एक युवा जिज्ञासु आश्रममें कभी-कभी आकर सेवा करते हैं । एक दिवस मैंने उन्हें भारतीय परिधान धारण करनेका महत्त्व बताया । एक बार वे सेवा हेतु आए और मैं अपने कक्षसे निकलकर बाहर आई तो मैंने उन्हें कुर्ता-पायजामा धारणकर सेवा करते हुए पाया; किन्तु आश्रमसे जाते समय वे पुनः पाश्चात्य वेशभूषामें आ गए । मुझे ध्यानमें आया कि उन्हें कुर्ता-पायजामा पहनकर बाहर जानेमें लज्जा अनुभव होती है; इसलिए उन्होंने ऐसा किया । आश्रमके साधकने बताया कि वे आश्रममें आकर प्रत्येकबार अपने वस्त्र परिवर्तित करते हैं । इससे मुझे समझमें आया कि आजकी निधर्मी मैकाले शिक्षण पद्धतिने हमें किस सीमातक पाश्चात्य बनाकर, हमें हमारी संस्कृति और धर्मसे विमुख कर दिया है कि आज हमें शुद्ध हिन्दी बोलनेमें, भारतीय संस्कृति अनुसार सात्त्विक वेशभूषा धारण करनेमें, हाथसे भोजन करनेमें और यहांतक कि स्वयंको हिन्दू कहनेमें लज्जा आती है ! सचमें मैकाले रूपी असुरने अपना आसुरी प्रभाव, इस देशपर और विशेषकर हिन्दुओंपर छोड ही दिया !
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