गुरुपूर्णिमा मनाना अर्थात् ऋषि-ऋणके प्रति समाजमें जागृति निर्माण करना है!


आधुनिकीकरण और पाश्चात्यकरणकी अन्धी दौडमें लिप्त आजका यह हिन्दू समाज, पाश्चात्योंके आधारहीन दिवस जैसे ‘फ्रेण्डशिप डे’, ‘रोज डे’, ‘वेलेनटाइन डे’, ‘फूल्स डे’ इत्यादि मनाता हैं; किन्तु गुरुपूर्णिमाके दिवस सहस्र गुना अधिक कार्यरत गुरुतत्त्वका लाभ उठाने हेतु गुरुपूर्णिमा नहीं मनाता । जिस ऋषि-परम्पराके कारण इतने आसुरी आक्रमणोंके पश्चात् भी हमारा धर्म एवं संस्कृति आज तक जीवित है, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करनेका भाव जिस समाजको नहीं रहता, उस समाजमें यदि अधर्म, दुःख, दारिद्रय, क्लेश इत्यादि त्रिविध ताप एवं बाढ, सूखा, भूकम्प जैसे प्राकृतिक प्रकोप तथा अराजकता, भ्रष्टाचार, बाह्य एवं आन्तरिक गृह युद्ध रुपी समष्टि पाप व्याप्त हो जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा ? देव, ऋषि एवं पितरोंके प्रति कृतघ्न मनुष्य, पाप और शाप दोनोंका अधिकारी बन सदैव दु:खी रहता है, यह तो शास्त्रवचन है ! – तनुजा ठाकुर



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