खरे अर्थोंमें विद्या हमारी बुद्धि और विवेकको जागृत करती है; परंतु आजकी मैकालेकी आसुरी शिक्षण पद्धतिने हमे योग्य और अयोग्यके मध्यका भेद भी समझने योग्य नहीं रहने दिया है, तभी तो कभी सत्त्व प्रधान रही इस भारतीय संस्कृतिमें जन्म लेनेवाले ये आजके कथित बुद्धिजीवी अपने विवेकको ताकपर रख पाश्चात्य संस्कृतिका अंधा अनुकरण करते हैं, जो पूर्णतः विवेकशून्य, तमोगुणी एवं अध्यात्म शास्त्र विरहित है !! सचमुच मैकालेकी शिक्षण पद्धतिने अपना रंग दिखा ही दिया !!!! – तनुजा ठाकुर
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