अपनी वासनाको अनियंत्रित कर परस्त्रीपर उसका प्रदर्शन करनेको पुरुषत्त्व नहीं कहते। अपनी वासनाको नियंत्रित कर परस्त्रीको मातृशक्तिके रूपमें देखनेको पुरुषत्त्व कहते हैं। जिन राजाओंने परस्त्रीको भोग्य समझ उसका शोषण किया उसकी कीर्ति और वंशका नाश शीघ्र हुआ है इतिहास इसका साक्षी है। वैदिक संस्कृतिमें जिन्होंने युद्धमें पकडे गए स्त्रीयोंको भी मां समान समझा, इतिहास ऐसे वीरोंको पृरुषके संज्ञा देता है -तनुजा ठाकुर
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