अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर खाजा और टके सारे भाजी !!


धर्मयात्राके मध्य जितने भी देशोंमें (नेपालको छोडकर) गई हूं तो मैंने पाया कि वहां रह रहे सभी भारतीय यातायातके सभी नियमोंका अक्षरश: पालन करते हैं ! यह देखकर मैंने जो भारतीय वहां रहते हैं, उनसे पूछा, “यहां आकर सारे भारतीय सतर्कतासे सारे नियमोंका पालन करते हैं, इसका कारण क्या है ?” सिंगापूर, थाइलैण्ड, दुबई, ऑस्ट्रिया, जर्मनी और इटली इत्यादिमें रह रहे सभी भारतीयोंने एक ही बात कही कि यहांके नियमोंका पालन नहीं करनेपर कठोर अर्थदण्ड (फाइन) तुरन्त भोगना पडता है । यह सुनकर मुझे धर्मका एक सिद्धान्त ध्यानमें आया और वह है – ‘धर्मानुसार यथोचित एवं प्रशंसनीय कृति करनेपर पारितोषिक देना और अयोग्य कर्म करनेपर दण्ड देना’, जो शासन तन्त्र कठोरतासे इस सिद्धान्तका पालन करवाता है, वह समाज अनुशासनबद्ध रहता है; परन्तु हमारे स्वतन्त्र भारतके निधर्मी कर्णधारोंने, जिनके कारण आजकी यह भ्रष्ट व्यवस्था आपको देखनेको मिलती है, वे धर्मके इस मूलभूत सिद्धान्तको ही भूल गए हैं, तभी तो सीमापर प्राण त्यागनेवाले सैनिकोंको चारसे पांच लाख मिलता है और एक दिवसके लिए ‘येन-केन-प्रकारेण’ रूपसे मुख्यमन्त्री पद पानेवालेको आजीवन निवृत्ति वेतन (पेंशन) एवं अन्य सुविधाएं मिलती है । दुर्जन सार्वजनिक रूपसे सीना तान कर ‘लाल बत्ती’में घूमता है और सज्जन सिर झुका कर अपनेको सबकी दृष्टिसे बचाकर चलता है । इसीको कहते हैं ‘अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी और टके सेर खाजा’ !!



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