खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला सर्वकर्म ज्ञात होता है
कुछ व्यक्ति अनेक संतोंसे संपर्क ( जिसे अंग्रेजीमें public relation maintain करना कहते हैं ) बनाए रखते हैं और अपनी इस कृतिकी डींगें सर्वत्र हांंकते फिरते हैं ! खरे संतोंके पास तो हम नग्न समान होते हैं उन्हें हमारा अगला-पिछला सर्वकर्म ज्ञात होता है , परंतु ये तथाकथित भक्त अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु भिन्न-भिन्न संतोंके द्वारपर डेरा जमाते रहते हैं और सोचते हैं कि वे इतने सारे संतके विश्वासी हैं ।
जिस प्रकार एक वैश्याका सबंध अनेक पुरुषसे होकर भी उसे किसी एक पुरुषका प्रेम जीवन पर्यंत प्राप्त नहीं होता उसी प्रकार अनेक संतोंके पास भटकते रहनेसे व्यक्तिको किसी भी संतकी कृपा नहीं मिलती । साधनामें एक निष्ठा और तत्त्वनिष्ठा यह महत्वपूर्ण गुण है और किसी एक संतके प्रति पूर्ण निष्ठा ही हमें भवसागरके पार लगा सकती हैं इस तत्त्वको ध्यानमें सर्व कृति करनेका प्रयास करना चाहिए !
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