गुरुकी अवज्ञाका परिणाम


गुरुकी अवज्ञासे कठोरतम नरक ‘रौरव’ नरककी प्राप्ति होती है , एकलव्यकी गुरुभक्ति यद्यपि श्रेष्ठ थी; किन्तु उससे गुरु अवज्ञा हुई थी और गुरुके मना करनेपर भी उसने धनुर्विद्या सीख ली; अतः गुरु द्रोणाचार्यने उसे गुरु अवज्ञाके पापसे बचनेके लिए उसका अंगूठा मांगकर उसे नरक यातना भोगनेसे बचा लिया; किन्तु इस तथ्यसे अनभिज्ञ  कुछ मुर्ख कहते है चूंकि वह भील थे; अतः गुरु द्रोणने पक्षपात किया, यदि वे इतने निकृष्ट  होते तो मात्र उनके मूर्ती बनाकर उनसे प्रार्थना कर, एकलव्य धनुर्विद्यामें प्रवीण कैसे हो सकता था ? और एकलव्यको अपने गुरुकी महानता ज्ञात थी; अतः चूकका भान होते ही उसने वह दण्ड सहर्ष स्वीकार कर अंगूठेको अर्पित कर अपनी गुरु दक्षिणा दी । अर्जुन और एकलव्य जैसे धनुर्धरको जन्म देनेवाले गुरुको भी बुद्धिभ्रष्ट कलियुगी जीव लांछन लगानेसे नहीं चूकते हैं  -तनुजा ठाकुर



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