कुम्भ क्षेत्र में एक प्रसिद्ध सन्यासीसे(आध्यात्मिक स्तर – ४५% ) मेरा परिचय हुआ जब मैं तीसरी बार उनसे मिलने इस बार के कुम्भ में गयी तो मैंने एक गेरुआ रंग की साडी पहनी थी , इससे पहले संभवतः मैं कोई और रंग की साडी पहन कर गई थी । जैस ही उन्होंंने मुझे देखा : “वे बोले आप इसमें बहुत अच्छी लग रही हैं आप एक ही रंग का वस्त्र पहना करें ” । (साधनाकी पहचान वस्त्र से नहीं होती ,यदि सन्यासकी दीक्षा न मिली हो तो वस्त्र शालीन और सात्त्विक हो यह आवश्यक है और उससे बाह्य मौसम अनुसार देहका रक्षण हो, इतना ही वस्त्रका कार्य होता है जिसे यह भी पता न होनेवाले धर्म का क्या ज्ञान देंगे ) ।
कुछ समयके पश्चात उन्होंने कहा “आपकी पढाई कहांं तक हुई है” ? मैंने कहा ” पढ़ाई इत्यादि सब छोड कर धर्मकी पढाई करती हूंं, और कराती हूंं और साधना करती हूंं ” उन्होंने कहा “परंतु समाजको दिशा देनेके लिए आज की उच्चतम शिक्षा पाना आवश्यक है ” । (हमारे देश के अनेक उच्च कोटिके संत अनपढ थे, व्यावहारिक और वह भी आज की नीतिशून्य मैकालेकी शिक्षण पद्धतिका साधना और अध्यात्म से दूर दूर तक संबंध नहीं है यह सामान्य सी बात न जानने वाले धर्म के बारे में समाज को क्या दिशा देंगे आप ही सोचें ! ) -तनुजा ठाकुर
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