शिवत्वहीन आधुनिक विज्ञानके दुष्परिणाम !


भारतमें कुछ समय पहलेतक पशुओंके लिए कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र होते थे, अब मनुष्योंके लिए भी कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र सर्वत्र कुकुरमुत्तेके समान पसरने लगे हैं  । धर्मविहीन पाश्चात्य देशोंमें विवाह जैसी संस्थाके उध्वस्त होनेसे वहां अब अनौरस सन्तानोंकी संख्या ४० % से अधिक हो गई है । अब तो भारतमें भी ‘डोनर एग’ और ‘डोनर स्पर्म’  सरलतासे उपलब्ध होनेसे महानगरोंमें विवाह जैसी संस्थाकी आवश्यकतापर भी आधुनिक पीढीने प्रश्न उठाने आरम्भ कर दिए हैं और चित्रपट जगतके कुछ पुरुष कलाकार बिना विवाहके अपने अनौरस पुत्रके पिता बनकर अन्य लोगोंको ऐसा करने हेतु प्रेरित कर रहे हैं ! भारतीय संस्कृतिमें विवाह पश्चात वंश-वृद्धि हो, इस हेतु अनेक संस्कारकर्म एवं अनुष्ठान हमारे धर्मशास्त्रोंमें बताए गए हैं और ये संस्कारकर्म, विवाह जैसी संस्थामें पति-पत्नीके सम्बन्धमें आत्मीयता तो निर्माण करते ही थे, साथ ही आध्यात्मिक प्रवासमें सहायक सिद्ध होते हैं तथा ऐसे दम्पतियोंसे तेजस्वी सन्तानोंका जन्म होता है, वहीं शिवत्वहीन आधुनिक विज्ञान, अपनी उपलब्धियोंसे विवाह जैसी संस्थाको ही नष्ट करनेकी उपाय योजना निकालता है एवं अब तो आधुनिक वैज्ञानिकोंने अपने शोधोंसे यह सिद्ध भी कर दिया है कि कृत्रिम गर्भाधानसे जन्म लेनेवाले शिशुओंमें शारीरिक और मानसिक विकलांगता जैसेे रोग अपेक्षाकृत अधिक प्रमाणमें होते हैं ।- तनुजा ठाकुर (११.८.२०१८)

(https://www.dailymail.co.uk/health/article-180379/Child-health-problems-linked-IVF.html)



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