शब्दातीत ब्रहमकी अनुभूतिके पश्चात् शब्दोंमें रुचिका न होना


एक बार शब्दातीत ब्रह्मकी (सत् चित्त आनंद )  अनुभूति हो जाये तो शब्दके स्तरके अध्यात्मका कोई महत्व नहीं रह जाता ! तथापि संत अपने गुरु या ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु शब्दके स्तरपर उतरकर समाज कल्याण हेतु लोगोंका मार्गदर्शन करते हैं और यह प्रक्रिया संतोंके लिए आनंददायक नहीं होता परन्तु उनके स्तरपर यही त्याग है ! – तनुजा ठाकुर



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