• भोजन करनेसे पूर्व हाथ-पैर धोकर कुल्ला करना चाहिए, उसी प्रकार भोजन करनेके पश्चात हाथ धोकर ग्यारह बार कुल्ला करनेसे दांतमें फंसे भोजनके कण बाहर आ जाते हैं ।
• भूमिपर आसन डालकर, पालथी मारकर भोजन ग्रहण करें ।
• भोजन करते समय हाथसे भोजन करें, कांटे चम्मचका प्रयोग टालें ।
• भोजन करते समय दाहिने हाथसे भोजन करें, कुछ व्यक्ति आजकल दोनों हाथोंसे भोजन करते हैं जो कि अयोग्य है ।
• भोजन करनेसे पूर्व प्रार्थनाकर नामजप करते हुए अर्थात मौन रहकर कृतज्ञताके भावसे भोजन करें ।
• आयुर्वेद अनुसार, भोजन करते समय जल अधिकसे अधिक एक चौथाई गिलास पीना चाहिए; प्रातः फलोंका रस, दोपहरके भोजनके समय छाछ या नमकीन लस्सी (तक्र) एवं रात्रिमें दूध रूपी पेय पदार्थका भोजनके साथ सेवन किया जा सकता है ।
• भोजन करते समय जिस हाथसे भोजन कर रहे हैं, उस हाथसे सभीके लिए रखे भोजनको स्पर्श नहीं करना चाहिए, इससे सभी अन्य भोज्य पदार्थ जूठे हो जाते हैं; इसलिए एक ही हाथसे भोजन करनेका प्रयास करें ।
• बासी, खट्टा, तीखा, चटपटा, मांसाहारी भोजन रज-तम प्रधान होता है, इसके विपरीत स्वास्थ्यवर्धक अल्प तेल मसालेयुक्त सात्त्विक आहार साधनाके लिए पोषक होता है ।
• भोजनके पश्चात थालीमें हाथ नहीं धोना चाहिए ।
• भोजन उतना ही लेना चाहिए जितना कि सेवन कर सकें, अन्नका एक दाना भी थालीमें न बचे, इसप्रकार भोजन करना चाहिए, अन्नको थालीमें जूठा छोड देना अन्नपूर्णा मांका एक प्रकारसे तिरस्कार करना है ।
• भोजनकी थाली ‘बोन चाइना’ इत्यादिकी न हो, यह ध्यान देना चाहिए, यदि कोई अतिथि आए और हमारे लिए केलेके पत्तेमें भोजन कराना संभव हो तो वह सर्वोत्तम होता है । चांदी, पीतल, कांसेकी थालीमें भोजन करना उत्तम होता है, अन्यथा स्टीलके बर्तनमें करना चाहिए । कांच अथवा चीनी मिट्टीके बर्तन तमोगुणी होते हैं; अतः उसमें भोजन करना टालना चाहिए ।
– तनुजा ठाकुर(११.६.२०१४ )
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