ध्यानके समय हुई अनुभूतिकी मिली स्थूलसे पुष्टि


दो माह पूर्व एक दिवस ध्यानके समय अकस्मात ‘उपासना’के नूतन प्रस्तावित आश्रमकी भूमिका दृश्य दिखाई दिया । वहां भूमिके पीछेवाले भागमें एक वृक्ष है, जिसमें तीन प्रकारके वृक्ष एक तनेमें हैं, वहां मैंने देखा कि अनेक देवताओंके साथ हमारे ‘श्रीगुरुके श्रीगुरु’ परम पूज्य भक्तराज महाराज एवं उनके गुरु तथा हमारे ‘श्रीगुरु परात्पर गुरु’ डॉ. आठवलेके साथ ही सप्तर्षि, अन्य ऋषिगण एवं भगवान परशुराम बैठे हुए थे । यह तथ्य ज्ञात होनेके पश्चात मैंने उन्हें प्रणाम किया और यथासम्भव उन सबका सूक्ष्मसे पूजन एवं आदर-सत्कार करनेका प्रयास किया । यह सब होनेपर भगवान परशुरामने कहा कि इस चौरस स्थानको (जहां चारों ओर देवगण बैठे थे) रिक्त ही रहने देना, यहां कुछ निर्माण कार्य मत करवाना ।  हम सब यहां ऐसे ही बैठक करने आया करेंगे और तुम्हारे कार्यको कैसे दिशा दी जाए इसपर भी हम यहां चर्चा करते हैं ! मैंने सहर्ष हामी भरी ।
  मैंने स्थूलसे उस परिसरका इतना अच्छेसे निरिक्षण नहीं किया था । इस अनुभूतिके कुछ दिवस पश्चात जब मैं गई तो ज्ञात हुआ कि वह वृक्ष आश्रमके लिए चयनित की गई भूमिके अन्तिम छोरसे लगभग अस्सी हाथ पीछे है और वहां एक चौरस वाटिका (बाग) सरलतासे बन सकती है । मैंने सूक्ष्मसे जो दृश्य देखा था, वह परिसर वैसा ही था, मात्र वहां चारों ओर पुष्पके वृक्ष नहीं थे, जो सम्भवत: मुझे इसलिए दिखाया गया कि उस परिसरको वैसा ही बना सकूं ! मैंने ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त की; क्योंकि अभी तक उस भूमिका आश्रमके नामसे पञ्जीकरण होना शेष है, तब भी सन्तों, ऋषियों और देवतागणोंका वहां वास्तव्य होने लगा था !
इसी माह, तीन दिवस पूर्व मैं पुनः उस भूमिपर राजमार्गसे आश्रम तक, भूमिस्वामीद्वारा बनाए मार्गको देखने गई थी । हमारे भूमिकी साथवाले भूमिपर एक किसान रहते हैं, उनकी बिटिया अपने ससुरालसे आई थी, हमें देखकर वह बाहर आई । मैं, उनका परिचय पूछकर बातें करने लगी और बात ही बातमें वे बताने लगीं कि इस तीन वृक्षोंवाले वृक्षके नीचे एक छोटासा देवालय था, जिसकी पूजा इस भूमिसे पूर्वके पूर्व जो स्वामी थे, वे किया करते थे; किन्तु जब उसे किसी औरने क्रय कर लिया तो उसकी पूजा होनी बंद हो गई और वह देवालय भी टूट गया ! मैंने थोडा ध्यानसे देखा तो ज्ञात हुआ कि उस देवालयका अवशेष वह अभी भी विद्यामान था जो सम्भवत: ग्राम देवताका रहा होगा ! मैंने उसका छायचित्र निकाल लिया है, बुद्धिवादियोंको सूक्ष्मसे हुई अनुभूतियोंके स्थूल साक्ष्य दिखानेसे कभी-कभी उनकी श्रद्धामें वृद्धि होती है; अतः यह करना अति आवश्यक होता है ! उस छोटेसे देवालयके अवशेषको देखकर मुझे ज्ञात हुआ कि उतने बडे परिसरमें सभी देवताओंने उस स्थानपर बैठक करनेका निर्णय क्यों लिया था ! इसप्रकार सूक्ष्मसे दिखाई दिया दृश्य एवं परशुराम भगवानके सन्देशकी स्थूल पुष्टि हो गई ।  
  जब भूमि चयन हेतु प्रथम बार उस वृक्षके पास गई थी, तभी मुझे दिव्यताका बोध हुआ था, वैस उस दिवस उस भूमिके चारों ओरके प्राकृतिक सौन्दर्यमेंं मैं पूर्णत: वशीभूत थी ।  बता दें, वह क्षेत्र भगवान परशुरामके जन्मस्थानके क्षेत्रसे मात्र पांच किलोमीटरकी दूरीपर है ।
इसी वर्ष अक्षय तृतीयाके (उस दिवस परशुराम जयन्ती भी मनाया जाता है) दिवस जब भूमि पूजन हो रहा था तो जैसे ही गुरुपूजन आरम्भ हुआ, मैंने नेत्र बंद किए तो भगवान परशुराम प्रकट (सूक्ष्मसे) हो गए और यह मेरे लिए एक सुखद आश्चर्य था । अत्यन्त ऊंची कद-काठी (कलियुगी व्यक्तिके चार गुना अधिक ऊंचाई), तेजस्वी गुलाबी आभायुक्त सौम्य मुखमंडल, मीठा गेरुआ रंगका वस्त्र, खडाऊं, लकुटी एवं कमण्डलु धारण किए जब वे भूमि पूजनके स्थलकी ओर आ रहे थे तो उनके इस प्रथम दर्शनसे मेरे अश्रु ही नहीं रुक रहे थे; क्योंकि मैं पण्डितोंको सब कुछ शास्त्र अनुसार एवं भावपूर्वक करने हेतु कहनेके क्रममें, उनका आह्वान करना भूल ही गई थी (उत्तर भारतमें सात्त्विक पुरोहितका अभाव पूजा-अनुष्ठान करवाते समय बहुत खलता है) ! किन्तु उन्होंने पिता समान उस शुभ कार्यमें अपनी उपस्थिति और आशीर्वाद दोनों ही दिए और जाते समय कहा, “मैं ऊपर पहाडीपर नहीं, तुम्हारे पास, यहां आश्रम परिसरमें रहूंगा ।” उनका यह आशीर्वचन आज भी कानोंमें अमृत घोलता है और हमने सोचा है कि उनका एक छोटा सा देवालय आश्रम परिसरमें बनवाएंगे ।  उसके पश्चात भी उस स्थलपर मुझे उनकी कई बार उपस्थितिकी अनुभूति हुई है । ब्राह्मतेज और क्षात्रतेजके साक्षात स्वरुप भगवान परशुरामकी इस विशेष कृपासे हम अनुग्रहित हुए और हमारा इन्दौर क्षेत्रमें आना ईश्वरीय नियोजन है, यह अब मुझे समझमें आने लगा है । – तनुजा ठाकुर (२८.८.२०१८)



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