कल पटनामें एक जिज्ञासुसे मिली वे कहने लगे “मैं आपके लेख तीन-चार बार पढता हूं, तभी पूर्ण रूपसे मुझे समझमें आता है |”
मैंने कहा, “व्यवहारमें एक विषयमें स्नातककी पदवी लेने हेतु दस वर्ष पहलीसे दसवीं कक्षा विद्यालयमें सीखना पडता है और उसके पश्चात महाविद्यालय में पांच वर्ष पढनेके पश्चात् मायाके एक विषयमें स्नातककी पदवी मिलती है और मृत्यु उपरांत यह ज्ञान मस्तिष्कके नष्ट होनेपर नष्ट हो जाती है एवं अगले जन्म पुनः यह प्रक्रिया दोहरानी पडती है |
जो अध्यात्मशास्त्र हमें जन्म और मृत्युसे परे ले जाता है, उसे यदि तीन बार पढनेपर, आप उसे आत्मासात कर लेते हैं तो वह आपके जीवत्मामें संस्कार या अनुभूतिके रूपमें अंकित हो जाता है और जो जन्म–जन्मांतर तक अर्थात् मोक्ष मिलने तक हमारे साथ रहता है और एक बार अध्यात्ममें जो आत्मसात कर लिया, उसका पुनः नहीं अभ्यास करना पडता है; क्योंकि जीवात्मा मोक्ष तक वही रहती है, मात्र शरीर भिन्न भिन्न धारण करती है; अतः इतने अल्प प्रयासमें यह तो अत्यंत श्रेष्ठ उपलब्धि है !- तनुजा ठाकुर (१६.१२.२०१३)
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