गया [अश्विनी]। दुनिया सनातन परंपरा को जानने-समझने की कोशिश कर रही, पर दुर्भाग्य कि उससे जुड़ी आस्था का जल अपने ही देश में सूख गया है। जिसकी एक बूंद भर से पुरखों के तृप्त हो जाने का विश्वास हो, पुराणों में वर्णित उस मोक्षदायिनी फल्गु नदी का वर्तमान कीचड़ में लथपथ है, सिसक रहा है।
पिछले डेढ़ दशक में नदी के तट पर पक्के मकानों का अंधाधुंध तरीके से निर्माण हुआ है। ऐसे करीब 1800 मकान चिह्नित किए गए हैं। सामाजिक-धार्मिक मान्यताओं को देखते हुए फल्गु को इस इलाके की आर्थिक रीढ़ कहा जाए तो गलत न होगा, लेकिन आज यही फल्गु नदी अपने अस्तित्व को तलाश रही है।
करोड़ों लोगों की आस्था है फल्गु
झारखंड से निकलकर बिहार के बोधगया में निरंजना और गया में प्रवेश करते ही फल्गु बन जाने वाली यह नदी मोक्ष देती है। यह हजारों वर्षो का विश्वास है। गया जिला हिंदू साहित्य सम्मेलन के महामंत्री राधानंद सिंह कहते हैं, पुराणों में यह वर्णित है कि इस नदी के जल से सिर्फ पांव भी सट जाए तो पितर मुक्त हो जाते हैं।
इसके जल को गंगा से भी अधिक मान्य माना गया है। पौराणिक मान्यता है कि यह भगवान विष्णु के दाहिने पैर के अंगूठे से नि:सृत हुई है।
देश ही नहीं, विदेश से भी आते हैं लोग
लोग यहां साल भर आते हैं, पर पितृपक्ष के समय लाखों की भीड़ होती है। देश के सभी राज्यों से लोगों का आवागमन होता है। विदेशी भी आते हैं। इनमें रूस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, अमेरिका, स्पेन, कनाडा जैसे देशों के लोग होते हैं, जिन्हें सनातन परंपरा यहां खींच लाती है।
इन दिनों यहां मौजूद रूस की इक्ट्रीना कहती हैं कि यहां तर्पण के बाद परम शांति मिलती है, यही कारण है कि मैं यहां आती हूं।
Leave a Reply