गाय और भैंसके दूधमें क्या अन्तर है ?



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भारतीय कृषिके लिए गोवंशका अधिक उपयोगी होना

अनादि कालसे भारत एक कृषि प्रधान एवं शाकाहारी देश रहा है । यहां अधिक वर्षाके कारण कृषिमें घोडेका उपयोग नहीं किया जा सकता है और अधिक उष्णताके(गरमीके) कारण भैंसेसे भी ठीकसे कार्य नहीं चल पाता है; इसीलिए अत्यन्त प्राचीन कालसे ही गोवंशका ही उपयोग कृषिमें भी किया जाता रहा है; किन्तु दुःखकी बात यह है कि भारतमें दिन प्रतिदिन भैंसोंकी संख्यामें वृद्धि हो रही है और गोवंशकी संख्यामें विशेषकर देसी गोवंशकी संख्यामें न्यूनता आ रही है जिससे किसान एवं कृषि दोनों ही प्रभावित हो रही है ।

अधिक धन अर्जित करनेके लोभमें भैंसपालन किया जाना

पूर्व कालसे हम गायोंके भिन्न उत्पादोंका सेवन करते आ रहे हैं; किन्तु पिछले कुछ दशकोंसे भैंसके दूधके उपभोगमें (खपतमें) आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है, जो अत्यन्त क्षोभका विषय है । भैंस एक तमोगुणी पशु है, ऐसेमें उसके दूधका भी तमोगुणी होना स्वाभाविक है; किन्तु धर्मप्रसारके मध्य जब मैं सुदूर ग्रामीण क्षेत्रोंमें गई तो देखा कि वहांके हिन्दू भी अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु दैवी तत्त्वयुक्त देसी गायका परित्यागकर, अधिक धन अर्जित करनेके उद्देश्यसे भैंस पालने लगे हैं ।  


भैंसोंकी संख्यामें वृद्धि भारतीय गोवंशकी संख्यामें गिरावटका एक मुख्य कारण
हमारी देसी गायकी संख्या न्यून होनेका एक कारण यह भी है कि आज लोगोंको गाय और भैंसमें क्या अन्तर है ?, यह उन्हें ज्ञात नहीं है; अतः गाय और भैंसमें क्या अन्तर है ? यह आज समाजको बताना अति आवश्यक हो गया है ।
गाय और भैंसमें अन्तर

गाय और भैंसके दूधमें अन्तर जानने हेतु सर्वप्रथम इन दोनोंमें क्या भेद है ?, यह जानना अति आवश्यक है ।
१. गाय आर्य संस्कृतिकी पोषक है, पुण्यदर्शक तथा दैवी सम्पत्ति है और भैंस म्लेच्छ संस्कृतिकी पोषक, अशुभदर्शक एवं आसुरी संस्कृतिकी पोषक है ।
२. गायके शरीरपर हाथ फेरनेसे आयु एवं तेजस्वितामें वृद्धि होती है और खूंटेपर बराबर खाती रहे तो सौख्य और शान्ति बढाती है, भैंसपर हाथ फेरनेसे आयु नाश होता है । आपको तो ज्ञात ही होगा कि भैंस यमराजका वाहन है, जो मृत्युके देवता माने जाते हैं और बराबर खूंटेसे बन्धे रहनेसे भैंस घरमें दारिद्र्य और अशान्ति लाती है । उसके शरीरसे दुर्गन्ध भी निकलती है ।
३. गायकी पूंछ पकडिए, वह अथाह जल पार करा देगी, भैंसकी पूंछ पकडकर देखें, वह जलमें नीचे बैठ जाएगी; इसीलिए कहते हैं, गाय वैतरणी पार करवानेवाली होती है और भैंस यमलोक ले जाती है ।
४. गायका बछडा खेती, लदनी आदिके कार्य पानी, धूप और जाडे सभी ऋतुओंमें अधिक कालतक कर सकता है; इसीलिए यह बलद अर्थात बलदाता कहलाता है । भैंसका पडवा, खेती, लदनीके कार्यमें पूर्णत: अनुपयोगी (निकम्मा) होता है । यदि धूप होती है तो वह लदनीकी वस्तुओंको लेकर पानीमें बैठ जाता है ।

५. प्रसव पश्चात गायका सात मासका बच्चा, मनुष्यके शिशु समान बच जाता है ।  ऐसा देखनेमें आया है कि भैंसको जल अति प्रिय है एवं कई बार वह जलके भीतर ही प्रसव कर डालती है, जिससे उसका बच्चा जलमें ही मर जाता है । (क्रमश: )

६. गाय कष्ट सहिष्णु जीव है; अतः वह शीघ्र अस्वस्थ नहीं होती और भैंस अतितिक्षु और जलका पशु है; अतः वह बार-बार अस्वस्थ होती है ।

७. गायका गोबर, सुन्दर खाद होता है और उससे लिपाई करनेपर वह कीडोंको मारता है एवं वायुको शुद्ध ही नहीं करता है; अपितु अणु एवं परमाणु ‘बमों’के विकिरणसे भी रक्षा करता है । भैंसका गोबर तम्बाकू जैसे तमोगुणी पदार्थके उत्पादनके लिए उपयुक्त होता है, इसके गोबरकी लिपाईसे कुछ भी विशेष लाभ नहीं होता, इसके विपरीत लिपी हुई भूमिपर सूक्ष्म काला आवरण निर्माण हो जाता है, जो अनिष्ट शक्तियोंके लिए पोषक होता है ।

८. भैंस गायसे दोगुना खाती है और थोडी भी भूखी रहनेपर दूध नहीं देती है ।

९. देसी गायके घीसे हवन करनेसे स्वर्गलोकतकके देवताके तत्त्व यज्ञकुण्डकी ओर आकृष्ट होते हैं और भैंसके घीसे आसुरी शक्तियां हवनमें उपस्थित होती हैं और यज्ञका सारा फल ले जाती हैं । इसीप्रकारका परिणाम देसी गायके घीसे और भैंसके घीसे ज्योत जलाकर पूजा करनेसे होता है ।

१०. गायसे गोरोचन जैसे सुन्दर पदार्थ प्राप्त होते हैं तथा पंचगव्य जैसे सुमधुर एवं सुपाच्य पेय प्राप्त होते हैं और जिसके माध्यमसे यज्ञ, प्रायश्चित, प्रक्षालन जैसे दिव्य कर्म सम्पन्न होते हैं । भैंससे ऐसे कोई पदार्थ प्राप्त नहीं होते एवं उससे प्राप्त पदार्थोंसे इसके विपरीत परिणाम प्राप्त होते हैं ।

११. गौमूत्र अमृततुल्य है और भैंसका मूत्र विषतुल्य है ।

 गाय और भैंसके दूधमें अन्तर

१. गायका दूध अमृततुल्य है, वह स्मरण शक्तिकी वृद्धि करनेवाला होता है, वहीं भैंसका दूध विषतुल्य है, वह स्मरण शक्तिको मन्द करता है ।
२. गायका दूध मधुर, स्निग्ध, शीतल, वात-पित्त-कफ नाशक, फेफडेके लिए लाभकारी, क्षयरोगको दूर करनेवाला तथा नल और नाडियोंको स्निग्ध करनेवाला होता है । अस्थिमर्दनसे (rickets) अशक्त होनेवाले बालकोंके लिए गायका दूध अमृत समान प्राणवर्धक होता है । भैंसका दूध तमोगुणी होनेके कारण, भारी, उष्ण (गर्म), वीर्यवर्धक, चिकना, कफ और वायुकारक, आलस्यको जन्म देनेवाला, मन्दाग्निकारक तथा छूतके रोगोंको बुलानेवाला होता है ।
३. गायके दूधमें ‘विटामिन ए (A)’ होनेसे यह नेत्र ज्योतिवर्धक है एवं भैंसके दूधमें ‘विटामिन ए (A)’ न होनेसे नेत्रज्योतिवर्धक नहीं है ।
४. गायके दूधमें रोग प्रतिरोधक गुण हैं । भैंसके दूधमें रोग प्रतिरोधक गुण नहीं हैं ।
५. गायका दूध रक्तचाप, मधुमेह आदिको नष्ट करता है, भैंसका दूध रक्तचाप, मधुमेह आदिका जनक है।

६. गायके दूधमें रहनेवाला ‘केसीन’ शीघ्र पचता है, इनमें नाना प्रकारके नमक भी पाए जाते हैं, जिनसे भी पाचन तन्त्र सुदृढ होता है । भैंसका दूध पचनेमें भारी और व्यक्तिके लिए हानिकारक है । वैज्ञानिकोंके अनुसार, गायके दूधमें ८ प्रकारके प्रोटीन, ६ प्रकारके विटामिन, २१ प्रकारके ‘एमिनो एसिड’, ११ प्रकारके वसायुक्त अम्ल, २५ प्रकारके खनिज तत्त्व, १६ प्रकारके ‘नाइट्रोजन’ यौगिक, ४ प्रकारके ‘फॉस्फोरस’ यौगिक, २ प्रकारकी शर्करा, इनके अतिरिक्त मुख्य खनिज सोना, ताम्बा, लोहा, कैल्शियम, आयोडीन, फ्लोरिन, सिलिकॉन आदि भी पाए जाते हैं । भैंसके दूधमें इतने प्रकारके तत्त्व नहीं पाए जाते हैं ।
इनसब तत्त्वोंके विद्यमान होनेसे गायका दूध एक उत्कृष्ट प्रकारका स्वास्थ्यवर्धक रसायन (टॉनिक) है, जो शरीरमें पहुंचकर रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्यको समुचित मात्रामें बढाता है । यह पित्तशामक, बुद्धिवर्धक और सात्त्विकताको बढानेवाला है ।
७. गाय और भैंसके दूधमें एक बडा अन्तर उनमें विद्यमान वसाकी (फैट) मात्राका होता है । भैंसके दूधमें गायके दूधकी अपेक्षा अधिक वसा (फैट) होती है; अतः उसमें कैलोरी भी आधिक ही होगी । १०० मिली. गायके दूधमें ७० कैलोरी होती है, जबकि १०० मिली. भैंसके दूधमें १०० कैलोरी होती है; इसलिए वे लोग जिन्हें न्यूनतम (कमसे कम) कैलोरीवाले खाद्य पदार्थके सेवन करनेका सुझाव दिया जाता है, उन्हें गायके दूधका सेवन करना चाहिए ।
८. गायका दूध हल्का माना जाता है और भैंसका दूध भारी । जिन खाद्य पदार्थोंमें अधिक वसा (फैट) होती है, उनको पचाना भी कठिन होता है; इसीलिए नवजात शिशुओंको और वृद्धोंको भैंसके दूधके स्थानपर गायका दूध पीनेका सुझाव दिया जाता है ।

९. गायके दूधमें स्वर्ण अंश समान एक प्रकारका रसायन होता है; अतः गायका दूध पीला लगता है । भैंसके दूधमें सोनेका अंश न होनेसे वह श्वेत दिखाई देता है ।
१०. विदेशी चिकित्सकोंने यह भी अनुभव किया है कि गायका दूध स्मरण शक्तिको बढानेमें तथा धारणाशक्तिको टिकाए रखनेमें भी बहुत सहायक सिद्ध होता है; किन्तु यह सब गुण भैंसके दूधमें नहीं होते । स्कॉटलैण्डके एक अनाथालयमें इसका प्रयोगकर देखा गया और पाया गया कि भैंसका दूध पीनेवाले बच्चे शीघ्र अस्वस्थ होने लगे । ‘पुणे कृषि महाविद्यालय’के अध्यापक रायबहादुर जे. एल. सहस्रबुद्धेने इसके प्रयोगको शिशुओंपर करके देखा था । उनके ब्यौरेसे ज्ञात हुआ कि भैंसके दूधके सेवनसे बच्चे मन्दबुद्धि और रोगी होने लगे । गाय और भैंसके दूधका प्रयोग घोडीके बच्चोंपर भी करके देखा गया और पाया गया कि जो घोडीके बच्चे भैंसके दूधपर पल रहे थे, वे सुस्त थे, उष्णताको सहन नहीं कर सकते थे और घोडोंके स्वाभाविक गुणोंसे भी रहित थे।

गायके दूधका दही और भैंसके दूधका दहीमें अन्तर

गायके दूधका दही पाचन शक्तिको बढाता है वहीं भैंसके दूधसे बना दही पाचनशक्तिके लिए हानिकारक होता है ।

 गायके घी और भैंसके घीमें अन्तर

गायके घीको अग्निमें डालनेसे एक टन प्राणवायु (ऑक्सीजन) बनती है । भैंसके घीको अग्निमें डालनेसे कुछ भी सकारात्मक तत्त्व नहीं मिलते हैं ।

सारांश यह है कि हमारे अन्दर सात्त्विकताकी वृद्धि करने हेतु, साथ ही यदि हमें अपनी देसी गायोंको बचाने हेतु एवं किसानोंकी उन्नति करने हेतु हमें गायके दूधका उपयोग करना होगा एवं जैसे ही इसकी मांग बढेगी स्वतः ही इसकी संख्यामें वृद्धि होती जाएगी । – तनुजा ठाकुर

 



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