गौ माताकी उत्त्पत्ति एवं गौ सेवाका लाभ


गौमाताका महत्त्व
भविष्य पुराणमें लिखा है कि गौमाताके पृष्ठदेशमें ब्रह्मका वास है , गलेमें विष्णुका, मुखमें रुद्रका, मध्यमें समस्त देवताओं और रोमकूपोंमें महर्षिगण,  पूंछमें अन्नत नाग, खूरोंमें समस्त पर्वत, गौमूत्रमें गंगादि नदियां, गौमयमें लक्ष्मी और नेत्रोंमें सूर्य-चन्द्रका वास है ।
गौ सेवा श्रेष्ठ सेवा क्यों ?
जिस गौमाताको स्वयं भगवान कृष्ण नंगे पांव जंगल-जंगल चराते फिरे हों और जिन्होंने अपना नाम ही गोपाल रख लिया हो, उसकी रक्षाके लिए उन्होंने गोकुलमें अवतार लिया । गौमाताके रोम-रोममें देवी-देवताओंका एवं समस्त तीर्थोंका वास है ।
गौमाताकी उत्पत्ति
देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथनके कालमें ५ गायें उत्पन्न हुईं, जिनके नाम थे – नंदा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला और बहुला । ये सभी गायें भगवानकी आज्ञासे देवताओं और दानवोंने महर्षि जमदग्नि, भारद्वाज, वशिष्ठ, असित और गौतम मुनिको समर्पित कर दीं । आज जितने भी देशी गौवंश भारत एवं इतर देशोंमें हैं, वे सब इन्हीं ५ गौओंकी संतानें हैं और हमारे पूर्वजों एवं ऋषियोंका यह महाधन है । क्या हम मात्र गोत्र बतानेके लिए ही अपने ऋषियोंकी संतानें हैं ?, क्या उनकी सम्पति, गौ धनको बचाना हमारा कर्तव्य नहीं ?
गौ सेवाका लाभ
शास्त्र कहता है — गौ भक्त जिस-जिस वस्तुकी इच्छा करता है, वह सब उसे प्राप्त होती है । स्त्रियोंमें भी जो गौओंकी भक्त हैं, वे मनोवाञ्छित कामनाएं प्राप्त कर लेती हैं । पुत्रार्थी पुत्र पाता है, कन्यार्थी कन्या, धनार्थी धन, धर्मार्थी धर्म, विद्यार्थी विद्या और सुखार्थी सुख पा जाता है । सम्पूर्ण  विश्वमें कहीं भी गौभक्तको कुछ भी दुर्लभ नहीं है । यहां तक कि यह मृत्युलोक भी बिना गायकी पूंछ पकडे संभव नहीं । वैतरणीपर यमराज एवं उनके गण भयभीत होकर गायकी पूंछ पकडे जीवको प्रणाम करते हैं ।



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