जनवरी ७, २०१९
आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेवने राम मन्दिर निर्माणपर कहा कि वहां मन्दिर ही बनना चाहिए । उन्होंने ‘इकनॉमिक टाइम्स’को दिए साक्षात्कारमें कहा कि मुस्लिमोंको भूमिका थोडा अतिरिक्त भाग दे सकते हैं; परन्तु राम मन्दिरका निर्माण होना ही चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि यह हिन्दू आस्था और संवेदनासे जुडा प्रश्न है । साक्षात्कारके प्रमुख अंश –
राम मन्दिर बनानेपर आपके क्या विचार हैं ?
यह बहुत विचित्र है कि न्यायालय यह निर्धारित करेगा कि वहां रामका जन्म हुआ था या नहीं !! ‘एएसआई’का भी कहना है कि वहां एक मन्दिर ही था । अब न्यायालयका कहना है कि यह भूमिसे जुडा प्रकरण है । जो भी है; परन्तु शीघ्रातिशीघ्र यह बन्द होना चाहिए । राम मंदिर कभी चुनावका मुद्दा नहीं था, न्यायालयको इसे निर्धारित करना है और इसे शीघ्रातिशीघ्र निर्धारित कर दे । वहां मन्दिर बना दो और समाप्त करो । वहां भूमिमेंसे केवल २.७ एकड ही विवादित भूमि है । यदि इसका एक तिहाई भाग मुस्लिमोंका है तो आदर्श स्थिति है कि मुस्लिमोंको २.७ एकड भूमिमें जितना भाग बनता है, उससे अधिक भाग गैर-विवादित भूमिमेंसे मिलना चाहिए । क्या हमारे यहां भूमि विवाद ऐसे ही नहीं सुलझाए जाते हैं ? हिन्दुओंके लिए इस भूमिके साथ भावनाएं जुडी हैं; क्योंकि उनकी मान्यता है कि रामललाने वहीं जन्म लिया था । मुस्लिमोंके साथ इसप्रकारकी कोई भावना नहीं जुडी हुई । न्यायालयको चुनावसे पूर्व ही इसपर निर्णय देना चाहिए ।
सबरीमाला मुद्देपर आप क्या सोचते हैं ?
सबरीमाला मुद्दा कोई लैंगिक भेदभावका प्रकरण नहीं है । हमारे यहां देवियोंके कहीं अधिक मन्दिर हैं । मन्दिर कोई प्रार्थनाका स्थान नहीं होता है, यहांपर आप केवल दर्शनके लिए आते हैं । सबरीमाला अकाल ब्रह्मचारीका स्थान है । यह उनका निजी स्थान है, उनका शयनकक्ष । आप वहां क्यों जाना चाहती हैं ? न्यायालयको यह नहीं निर्धारित करना चाहिए कि एक मन्दिरके भीतर क्या हो या क्या नहीं हो ?
किसानोंकी ऋण मुक्ति योजनापर आपकी क्या सोच है ?
उत्तर: इससे कोषपर प्रतिकूल प्रभाव पडता है और किसानोंकी समस्याएं ऋणमुक्तिकेद्वारा समाप्त नहीं होंगी । किसानों ये यह कहें कि आप ऋण लो और उसे मत चुकाओ । यदि आप एक बार पैसे लेकर, उसे कभी नहीं चुकानेका चलन आरम्भ कर दोगे तो कोई कबतक आपको पैसे देते रहेगा ?
“अयोध्या और सबरीमालामें हो रहे निराधार निर्णय केवल हिन्दुओंकी विडम्बना ही करते हैं और दुःखद यह है कि यह हिन्दू बहुल राष्ट्रमें हो रहा है । संविधानके नामपर समानताकी बातें कर हिन्दुओंके आस्थास्थानोंपर चोट करना, राम मन्दिरके नामपर न्यायाधीशोंका छुट्टीपर चले जाना, ये सब यूं ही तो नहीं होता है । हिदुओंके साथ कुछ भी अनर्गल निर्णय देनेको न्यायालय और शासकवर्ग स्वतन्त्र हो चुके हैं; अतः धर्मराज्यकी स्थापनाकर ही इस स्थितिको परिवर्तित किया जा सकता है !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : नभाटा
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