एक शास्त्र वचन है, ‘ईश्वरं यत करोति शोभनं करोति’, गुरु ईश्वरीय तत्त्वके प्रतिनिधि होते हैं; इसलिए गुरु भी जो करते हैं वह अच्छेके लिए करते हैं । जिस भक्त, साधक या शिष्यमें यह भाव होता है और वह गुरु या ईश्वरद्वारा निर्मित परिस्थितिमें आनन्दी रहता है, उसका कल्याण सदैव ही होता है ।
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