गुरू अथवा ईश्वर कभी किसीसे अन्याय नहीं करते


किसी गुरुको माननेवाले एक साधकने कहा, “मैंने अपने गुरुके लिए उस समय बहुत किया, जब उनके पास साधक संख्या नगण्य समान थी; किन्तु अब उनके पास बहुत साधक आ गए हैं; इसलिए मेरी सेवा किसी और साधकको उन्होंने दे दी है और अब मेरी स्थिति आश्रममें एक कुत्ते जैसी हो गई है ।” मैंने कहा, “आपका अहं आपसे यह बुलवा रहा है, वस्तुत: गुरुके आश्रमका तो कुत्ता भी पूजनीय होता है; इसलिए गुरुके आश्रममें आश्रय मिलना ही बहुत बडा सौभाग्य है, आपसे सेवाके मध्य कौन सी चूक हो रही थी, इसका अभ्यास करें और स्वयंमें आवश्यक सुधार करें ! ध्यान रहे, गुरु दो कारणोंसे कोई सेवा किसी साधकसे ले लेते हैं, या तो आप अपनी सेवा ठीकसे नहीं कर पा रहे थे या वे और भी महत्त्वपूर्ण सेवा देनेका विचार कर रहे होते हैं; किन्तु अहंके कारण यदि आप अपनी सेवा या उत्तरदायित्व किसी साधकको सौंप नहीं सकते हैं तो अपना सर्वस्व अपने श्रीगुरुको कैसे सौंपेंगे ?; इसलिए ऐसे विकल्प अपने गुरुके विषयमें न लाएं ! कृतज्ञताके भावसे जो सेवा मिलती है या जिस स्थितिमें गुरु रखते हैं, उसमें आनन्दपूर्वक रहें और अपनी व्यष्टि साधना और जो भी सेवा दी जाती हो, उसपर अपना ध्यान केन्द्रित करें ! गुरु कभी भी किसीके साथ अन्याय नहीं करते हैं ! गुरु तो ईश्वर होते हैं और ईश्वर किसीके साथ अन्याय कैसे कर सकते हैं ?



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