गुरु पूजनीय इसलिए होते हैं; क्योंकि वे धर्मका ज्ञान देकर हमें पाप करनेसे बचाते हैं और यदि जाने-अनजानेमें इस जन्म या पिछले जन्ममें पाप हो गया हो तो उसे भोगने हेतु प्रवृत्त ही नहीं करते हैं; अपितु उसे भोगनेकी शक्ति भी देते हैं; क्योंकि पापोंको भोगकर ही समाप्त किया जा सकता है । गुरु इसलिए भी तारणहार होते है; क्योंकि वे हमें पाप और पुण्यसे परे ले जाते हैं अर्थात स्वर्गसे उच्च लोकोंकी प्राप्ति गुरुके माध्यमसे होती है । जिन पन्थोंमें गुरु-शिष्यकी सनातनी परम्परा नहीं है, उनके यहां सूक्ष्म लोकोंकी व्याप्ति स्वर्ग और नरक तक ही सीमित होती है और सद्गुरु मात्र महर्लोक, जन, तप और सत्य लोककी मात्र जानकारी ही नहीं देते हैं, अपितु उन लोकोंतक पहुंचानेका मार्ग प्रशस्त करते हैं ।
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