गुरुकृपा और देवता प्रसन्न होनेका प्रभाव !


यदि हमारे ऊपर गुरुकृपा हो, वास्तु देवता, स्थान देवता, कुलदेवता एवं अन्य देवता प्रसन्न हों और हम कुछ कार्य करें तो उसपर कैसे प्रभाव पडता है ?, यह आपको बताती हूं ! पिछले दो वर्षसे उपासनाके आश्रमका निर्माण कार्य चल रहा है तो कई बार वर्षाकालमें कुछ ऐसा कार्य होता है कि यदि उस समय वर्षा हो जाए तो निर्माण किया स्थलमें जलके प्रभावसे सब बह जाएगा । एक वर्ष पूर्वकी बात है । आश्रमके भूमिकी ढलाई हो रही थी । हम इंदौरसे मानपुर कुछ साधकोंके साथ आ रहे थे, मार्गमें बहुत वर्षा होने लगी तब मुझे ध्यानमें आया कि आज तो वहां भूमिकी (फर्शकी ) ढलाई हो रही है तो इतनी वर्षामें तो सब बह जाएगा । मानपुरसे पांच किलोमीटर पूर्वतक बहुत ही अधिक वर्षा हो रही थी; किन्तु जब हम मानपुर पहुंचे तो देखा कि सूर्यदेवता चमक रहे हैं ! वहांकी भूमि भी गीली थी; किन्तु वह उतनी नहीं थी । मिस्त्रीने बताया कि मेघ आया तो था; किन्तु हलकी फुहार आकर चली गई ।
    ऐसे ही परसों मीरा कुटीरके पास बहुत कीचड होनेसे वहां हमने सीमेंटसे भूमिपर कुछ पक्का निर्माण करवा दिया और मैं मिस्त्रीको सब बताकर किसी कार्यसे महू (मानपुरसे २० किलोमीटरकी दूरीपर है) चली गई और जब लौटकर आई तो बहुत अधिक वर्षा हो रही थी, मुझे लगा सब बह गया होगा; किन्तु श्रमिकोंने जो बताया वह बहुत ही आश्चर्यजनक था ! उन्होंने कहा कि हमारे आश्रमके ऊपर बहुत घने मेघ तो थे; किन्तु वे उड गए और हमारे आश्रमके निकटके दोनों खेतोंमें बहुत बरसात हुई; किन्तु आश्रम परिसरमें मात्र ‘बूंदाबांदी’ ही हुई ! कल सम्पूर्ण दिवस बहुत अच्छी धूप थी तो सोचा जो थोडासा और एवं वह भाग भी पक्का करवा देते हैं । सन्ध्या होते-होते वह निर्माण पूर्ण हो पाया; किन्तु मेघ छाने लगे ! मैंने इन्द्र देवतासे कहा, “पहाडी क्षेत्रमें आप कभी भी आ जाते हैं, ऐसे तो सब बह जाएगा !” उन्होंने कहा, “मेरे कारण क्या कभी उपासनाके कार्यको हानि पहुंची है ?” मैंने कहा, “नहीं !” उन्होंने कहा, “आज भी नहीं पहुंचेगी ।” उसके पश्चात मेघ गरजने लगे, बिजली चमकने लगी और आकाश मेघसे भर गया; किन्तु मात्र ‘बूंदाबांदी’ ही हुई !
   इन्द्र देवताने ठीक ही कहा था कि उनके कारण उपासनाके निर्माण कार्यको कभी भी हानि नहीं पहुंची है । मैंने आपको पूर्वके लेखमें भी बताया ही था कि कैसे ख्रिस्ताब्द २०१७ में बांका आश्रमकी छतकी ढलाईके समय कैसे इन्द्र देवताने अमृतवर्षा की थी और मुझसे कहा था कि अबसे उपासनाका निर्माण कार्य चलता ही रहेगा और वैसे ही हुआ । तब तो मानपुर आश्रम कल्पनामें भी नहीं था । उस समय भी बाहर सीमेंटकी २५ बोरियां थीं और पांच मिनिट थोडी बरसात हुई; किन्तु सीमेंटकी बोरियोंको कोई हानि नहीं पहुंची । यदि वही वर्षा १५ मिनिट भी हो जाती तो छतकी ढलाई भी बह जाती और सीमेंटकी थैलियां भी यदि प्लास्टिकसे ढकते तो भी गीली हो जाती । यह सब देवकृपा एवं गुरुकृपाके कारण होता है ।
ऐसे प्रसंग इतनी बार घटित हो चुके हैं कि अब इन्द्र देवता कुछ कहते हैं तो मैं निश्चिन्त होकर अपनी दूसरी सेवा करने लगती हूं !


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