गुरुकृपा हेतु बच्चोंको थोडा समय नामजप, आध्यात्मिक उपचार एवं सेवामें देने प्रवृत्त करें !


दसवीं और बारहवींकी परीक्षा परिणाम आनेके पश्चात मुझसे जो साधक माता-पिता सम्पर्कमें हैं, उनमेंसे कुछ तो अपने बच्चोंके परीक्षा परिणामसे बहुत दुखी हो जाते हैं, जबकि मैं इन सभी साधक माता-पिताको अनेक बार कह चुकी हूं कि अपने बच्चोंको थोडा समय नामजप, आध्यात्मिक उपचार एवं धर्मप्रसारकी सेवामें योगदान देने हेतु प्रवृत्त करें; परन्तु अधिकांश अभिभावकोंको लगता है कि सेवा करनेसे उनके बच्चे पूर्णकालिक साधक बन जाएंगे और इस असुरक्षाकी भावनासे ग्रसित ये सभी माता-पिता अपने बच्चोंको व्यष्टि साधना तो अल्प प्रमाणमें करने देते हैं; परन्तु समष्टि सेवासे अपने युवा बच्चोंको दूर रखते हैं और परिणामस्वरूप उनके बच्चोंपर जितनी मात्रामें गुरुकृपाका प्रवाह होना चाहिए, वह नहीं हो पाता है !
      ध्यान रहे, आपकी साधनामें इतना बल नहीं होता कि आपकी साधनासे आपके बच्चोंके प्रारब्धकी तीव्रता और अनिष्ट शक्तियोंके कष्ट अल्प हो जाएं ! यदि घरमें पितृदोष हो तो बच्चोंको दसवीं और बारहवीके परीक्षा परिणाममें या प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओंमें अपेक्षित यश नहीं मिलता है और प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षामें ५० प्रतिशत प्रारब्ध और ५० प्रतिशत क्रियमाण कर्मका महत्त्व होता है । ऐसेमें यदि युवा बच्चे नामजपके साथ सेवा करते हैं तो उनके क्रियमाण कर्मके कारण उन्हें प्रतिस्पर्धामें गुरु कृपा प्राप्त होती है; परन्तु चाहे देश हो या विदेश, सभी स्थानोंपर मैंने पाया है कि आजके हिन्दू माता-पिता अपने बच्चोंको सेवासे दूर रखकर पढाई करनेपर अधिक बल देते हैं और परिणामस्वरूप उनके बच्चोंको जो यश मिलना चाहिए, वह नहीं प्राप्त होता है !


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