गुरुसेवा हेतु मनकी शुद्धि आवश्यक है !!!


जैसे कर्मकाण्डकी साधना हेतु शरीरकी शुद्धि परम आवश्यक है, वैसे ही गुरुसेवा हेतु मनकी शुद्धि आवश्यक है, विकल्पके साथ की गयी सेवा गुरु स्वीकार नहीं करते ! हमारे श्रीगुरुके आश्रममें जो भी साधक विकल्पके साथ सेवा करते थे, वे सब कालांतरमें साधना और श्रीगुरुके संरक्षणसे दूर चले गए ! गुरु आपके मनोभावको अच्छेसे जानते हैं; अतः चाहे कोई भी सेवा मिले उससे कृतज्ञतासे करना चाहिए | यहां एक विशेष तथ्य बताना चाहूंगी कि यदि विकल्प अनिष्ट शक्तियोंद्वारा साधकके मनमें डाला जाता है और साधकको ऐसा लगे कि मेरे मनमें  मेरे श्रीगुरु या सेवाके प्रति ऐसे विकल्प कैसे आ रहे है तो उसी क्षण मनमें प्रार्थना कर क्षात्रवृत्तिसे उन विचारोंके प्रवाहको रोकें यदि ऐसा करना सम्भव न हो तो अपने ज्येष्ठ साधक या मार्गदर्शककी सहायता लें ! -तनुजा ठाकुर (२२.७.२०१४)



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