हम किसी भी मार्गसे साधना करें, होता वह हठयोग ही है !


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चाहे हम किसी भी योगमार्गसे साधना करें वह अंततः हठयोग ही होता है, जीवात्माको मायासे खींच कर ब्रह्मतक ले जाना, अर्थात् इस मायावी सृष्टिके गुरुत्त्वाकर्षणके विरुद्ध जाते हुए उस पुरुष तत्त्वकी ओर मार्गक्रमण करना; और प्रकृतिके विरुद्ध जाना हठयोग ही तो है | मात्र जब जीवको उस सत-चित-आनंदकी प्रचीति होने लग जाती है, तब प्रकृतिका आकर्षण नष्ट होने लगता है और पुरुषकी ओर आकर्षण सहज होने लगता है, इसके पश्चात् ही साधना, हठयोगसे सहजयोग हो जाती है ! – तनुजा ठाकुर



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