भारतीय समृद्ध इतिहास, सम्राट अशोकने रोबोटोंसे लडा था युद्ध, वैज्ञानिक सोचमें हिन्दू ग्रन्थ था विश्व-गुरु !!


मार्च ३१, २०१९

एड्रियेन मयोर प्राचीन विज्ञानकी इतिहासकार हैं, दंतकथाओंमें रुचि रखती हैं और अमेरिकाके प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड विश्विद्यालयमें शोध छात्रा हैं । ‘सन्डे टाइम्स’ समाचारपत्रसे बात करते हुए उन्होंने बताया कि कैसे हिन्दू मिथकोंमें सम्राट अशोकके रोबोटोंसे युद्ध करनेका वर्णन है । अपनी कृति ‘Gods and Robots: Myths, Machines, and Ancient Dreams of Technology’में मयोर प्राचीन सभ्यताओंद्वारा भविष्यकी तकनीकको कल्पित करनेका विश्लेषण करती हैं ।

प्रश्न: हिन्दूवादियोंका ऐसा मानना है कि प्राचीन भारतीयोंने अंतरिक्षयानसे लेकर मिसाइल व अन्तर्जालतक सब कुछ बना रखा था । अपने शोधमें आप इसे कैसे देखती हैं ?
मयोर: मेरे शोधका मूल विषय प्राचीन मानवमें वैज्ञानिक प्रेरणाके उद्गम और प्रथम आभासका है । इस विषयमें शोध करते-करते मैं मिथकोंके मध्य जा पहुंची, जहां मैंने पाया कि प्राचीन व्यक्तियोंने कृत्रिम जीवन, यंत्रमानव (रोबोट), मशीनें आदि बनानेके बारेमें तबसे सोचना आरम्भ कर दिया था, जब वे तकनीकी रूपसे इसे निष्पादित करनेसे कोसों दूर थे । रोबोटों और उन्नत मशीनोंकी मौखिक कहानियोंको लिखित रूपमें प्रथम बार २७०० वर्ष पूर्व होमरके (यूनान) समय लाया गया था । ऐसी ही कहानियां रामायण, महाभारत, आदिमें भी मिलतीं हैं । विश्वकर्मा और माया भी ऐसी ही चीजें बनाया करते थे । यूनानियोंमें यही चीज देवता हिफेस्टस और शिल्पकार डेडॉलस करते हैं ।

इन कहानियोंको मैं विश्वका प्रथम विज्ञान मानती हूं । उन्नत तकनीकके प्राचीन सपने किसी एक सभ्यताकी बपौती नहीं हैं । आप यूनानी, मिस्री, हिन्दू, इस्लामिक, इट्रस्केन, चीनी या किसी भी अन्य सांस्कृतिक मिथकको देखें, जो कृत्रिम जीवनके बारेमें है । उनमें यह कल्पना होती है कि यदि किसी व्यक्तिको दैवीय रचनात्मकता और शक्तियां मिल जाएं तो क्या-क्या संभव है ! उन मिथकोंको समकालीन आधुनिक विज्ञानके विकाससे सीधे नहीं जोडा जा सकता ।

प्रश्न: आप कहती हैं कि भारतीय और यूनानी संस्कृतियां एक-दूसरेसे तकनीकोंकी कल्पनाएं उधार लेती हैं । कैसे?


मयोर: भारतीय और यूनानी मतोंका एक-दूसरेपर प्रभाव डालना लगभग ईसासे पांच शताब्दी पूर्व प्रारम्भ हुआ, और सिकंदर तथा पुरु के बीच की संधि के बाद यह और भी बढ़ गया। जैन ग्रंथोंमें लिखा है कि अजातशत्रुके अभियंताओंने ऐसे रथोंका अविष्कार किया, जिनमें घूमते चक्र थे । ऐसा माना जा सकता है कि उत्तरकालके फारसी रथोंमें लगी हुई दरांतियां इसीसे प्रेरित थीं ।

भारतीय सदैव ही तेलके दिए जलाते आए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि यूनानियों और रोमनोंसे बहुत पहले उन्हें मिट्टीके तेलकी भी जानकारी रही होगी । यूनानके टियानाके घुमक्कड सन्त अपोलोडोरसने स्वचालित नौकर और स्वयंसे चलनेवाले रथ भारतीय राजाओंके पास देखे ।

प्रश्न: और किन संस्कृतियोंमें उनके स्वयंके दिव्यास्त्र, रोबोट, और उडते रथ थे ?


मयोर: उडते रथों और कृत्रिम हंसों, कृत्रिम नौकरों, विशाल रोबोटों, मशीनों जैसे मिथक महाभारत, रामायण, कथासरित्सागर, हरिवंश, और कई अन्य पुस्तकोंमें मिलते हैं । मिस्री अभिलेखों और होमरकी ओडिसीमें ऐसे जहाजोंका वर्णन है, जो अपनी राह स्वयं खोज लेते थे ।

प्रश्न: बुद्धके अवशेषोंके रक्षक एंड्राइड योद्धाओंकी क्या कहानी है ?


मयोर: इसकी सबसे विस्तृत कहानी लोकपनत्ती नामक बर्मी ग्रन्थमें है । कथा है कि गौतम बुद्धकी मृत्युके पश्चात राजा अजातशत्रुने उनके शवको एक स्तूपके नीचे गुप्त कक्षमें छिपा दिया । उसकी रक्षा भूत वाहन यंत्र (spirit movement machines) कर रहे थे । यह रोबोट योद्घा थे, जिनके पास तलवारें भी थीं । यह राजा अजातशत्रुके पास विद्यमान तलवारोंसे लैस युद्ध वाहनों और मशीनोंकी स्मृति दिलाते थे । यूनानी मिथकोंमें भी मानवीय और पशु रूपमें स्वचालित योद्धाओंका वर्णन है, जो महलों और कोषके रक्षक थे ।

यह स्वचालित सैनिक बुद्धके अवशेषोंके तबतक रक्षक रहे, जब तक कि सम्राट अशोकको इस गुप्त कक्षके बारेमें पता नहीं चल गया । अशोकने इन सैनिकोंसे युद्ध किया और इन्हें पराजित करनेके पश्चात इनपर नियत्रण करना सीखा, जिसके पश्चात वे अशोकके आज्ञाकारी हो गए ।

“भारतका इतना उनत विज्ञान, जो सहस्रों वर्षोंकी दासतामें लुप्त हो गया, उसे अस पुनर्जीवित करनेकी आवश्यकता है ! इसके लिए शोध संस्थान खोले जाने चाहिए थे; परन्तु स्वतन्त्रताके पश्चात ही दास प्रवृत्तिके नेताओंने मैकॉलेकी नीतिपर चलते हुए भारतीयोंको केवल दास बनानेकी सोची, जिसमें वे सफल भी रहे कि आज भारतीय न केवल शारीरिक वरन मानसिक दास बन चुके हैं और वे अपने पूर्वजोंकी महान परम्पराओंको कोसते हैं । नवनिर्माण हेतु  पहले वह पीढि सज्ज करनी होगी, जो पहले परम्पराओंको मानना सीखे, वह हिन्दू राष्ट्रकी स्थापनाके पश्चात ही सम्भव है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : ऑप इण्डिया



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