चरित्र ही है व्यक्तित्वका आभूषण


स्वामी विवेकानन्द विश्व धर्म सम्मेलनमें भाग लेने शिकागो (अमेरिका) गए थे । उनके भगवे वेशभूषाको देखकर एक विदेशी महिलाने उनका उपहास करते हुए पूछा, “यह क्या है ?” वे वाक्पटु तो थे ही, तपाकसे उत्तर दिया, “यह आपका देश है, जहां दर्जी और वेषभूषा आपके व्यक्तित्वका निर्माण करता है; परन्तु हमारे देशमें चरित्र, व्यक्तित्वका निर्माण करता है ।”
  परन्तु ऐसे सुसंस्कृत भारतकी विडम्बना तो देखें कि वर्तमान स्वतन्त्र भारतमें हमारी इस धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थामें, मैकालेकी अधर्मी शिक्षण पद्धति और पाश्चात्य संस्कृतिके अंधा अनुकरणने इस देशको मात्र बाह्य व्यक्तित्व संवारनेकी कला सिखाने लगा है; फलस्वरूप आज सौन्दर्य प्रसाधनोंके उत्पादनों एवं मांगमें भारी वृद्धि हुई है, गली-गलीमें सौन्दर्य संवर्धन केन्द्र (ब्यूटी पार्लर) खुलने लगे हैं, सभी अब मात्र बाह्य रूपसे सुन्दर दिखनेमें प्रयासरत रहने लगे हैं ! और चारित्रिक कुरूपताका भयावह परिणाम यह है कि हमारे देशमें बलात्कार एक महामारी समान फैलने लगा है और अनेक आधुनिक कही जानेवाली स्त्रियां अपनी लोक-लज्जा छोड निर्लज्ज समान आचरण करने लगी हैं ! राष्ट्रीय चरित्रके नैतिक पतनका चरम यह है कि नर-पिशाच कोमल बच्चियों, मूक-बधिर बालिकाओं, वृद्धाओं एवं विधवाओं, अपनी पुत्री, पुत्र-वधू, पोती एवं दादी तकको अपनी वासनाका शिकार बनाने लगे हैं ! – तनुजा ठाकुर



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