आजके कालमें दुर्जन संगठित हैं और सज्जन नहीं, इस कारण सर्वत्र ‘त्राहि मां’ की स्थिति बनी हुई है। जब भी इस देशकी तथाकथित लोकतान्त्रिक व्यवस्था (स्वतन्त्रता पश्चात प्रजातन्त्रके नामपर एक प्रकारका राजतंत्र ही नेहरू कुलचला रहे हैं ) राजनीतिज्ञोंद्वारा किए जा रहे कृकृत्योंपर नियंत्रण करने हेतु कुछ भी प्रयास करना चाहती है सर्व पक्षीय नेतागण अपने सारे भेदभाव भुलाकर अपने स्वार्थसिद्धि हेतु संगठित होकर उसका मुखर होकर विरोध करते हैं और हम सज्जन संगठित होकर उनका सामना करनेके स्थानपर, जो कुछ अच्छा कर रहे हैं उनकी टांगे खींचते रहते हैं, तभी तो मुट्ठी भर दुर्जन इस देशपर राज्य कर रहे हैं, हममे वैचारिक परतंत्रता अभी भी अत्यधिक है ! -तनुजा ठाकुर
मैं भी हिंदू राष्ट्र को बढाना चाहता हूँ । मुझे अपने हिंदू होनेे का गर्व है ।