२९ वर्षों पश्चात घाटी वापस लौटे कश्मीरी पण्डित रोशन !!


मई ३, २०१९

२९ वर्ष पूर्व धर्मान्ध जेहादियोंके आक्रमणमें जीवित बचनेके पश्चात अपना घाटीसे व्यापार बंदकर देहली जा बसे कश्मीर पण्डित रोशन लाल जीवनके अन्तिम मोडमें वापस वादी लौट आए हैं । अपने जन्मस्थानपर पग रखते हुए उनके मुंहसे सहसा निकल पडा कि कश्मीर जैसा कोई नहीं । यही नहीं, जब वे वादी आए तो उनके पुराने संगी-साथियोंने उन्हें पुनः दुकान खोलनेके लिए बल दिया । ये वे लोग थे, जिनकी दुकानें उनकी दुकानके आसपास थीं ।

उन्हें इस बातका दुःख है कि कश्मीरमें आतंकवादके कारण राज्यसे बाहर सभी कश्मीरियोंकी नकारात्मक छवि प्रस्तुत की जा रही है । डाउन-टाउनके जेनाकदलमें रहनेवाले रोशनलाल मावा और उनका परिवार श्रीनगरके प्रभावशाली परिवारोंमेंसे एक था । अब उन्होंने १९९० में आतंकी आक्रमणके कारणसे बंद की गई अपनी दुकानको पुनः आरम्भ किया है ।

उन्होंने अपनी दुकानका नाम रखा है ‘जियो बाजार’ । पुराने मित्रोंके मध्य एक बार पुनः अपने पुराने मोहल्ले और बाजारमें अपना व्यापार आरम्भ करनेसे उत्साहित और रोमांचित दिख रहे रोशनलाल मावाने कहा कि अपना घर, अपना नगर, अपने लोग, अपने ही होते हैं । बाहर जाकर आप चाहे जितनी भी प्रगति कर लें, आपके भीतरकी रिक्तताको (खालीपनको) कोई नहीं भर सकता । मावाने कहा कि उन्होंने न केवल पूरा हिन्दुस्तान वरन विश्वके कई देशोंको देखा है; परन्तु उन्हें न तो कोई स्थान कश्मीर जैसा सुन्दर लगा और न कश्मीरियोंकी भांति कहीं सद्भाव है ।

उन्होंने बताया कि जब वे वादी आए तो उनके पुराने मित्रोंने पुनः दुकान खोलनेके लिए बल दिया । ये वे लोग थे, जिनकी दुकानें उनकी दुकानके आसपास थीं । बाजारमें लोगोंने उनकी दस्तारबंदी की, जो बडा सम्मान है । वृद्ध कश्मीरी पण्डितका कहना था कि कश्मीरमें बंदूक, पथराव, हडताल और मारकाटके पश्चात आज भी मुस्लिमों और कश्मीरी पण्डितोंमें भाईचारा बना हुआ है । यह पहलेसे कहीं अधिक सशक्त हुआ है । उन्होंने बताया कि ३१ अक्तूबर १९९० को उनपर आतंकियोंने चार गोलियां मारी थीं; परन्तु वे ईश्वरकी कृपासे बच गए । इसके पश्चात वे देहलीमें बस गए और व्यापारकर वहां घर भी बना लिया; परन्तु उन्हें घाटीकी स्मृति उद्विग्न करती रही ।

रोशन लालके पुत्र डॉ. संदीप कई वर्षोंसे कश्मीरमें ही रह रहे हैं । उनका यहां बडा व्यापार है । जम्मू स्थित निजी चिकित्सीय महाविद्यालयसे एमबीबीएस करनेवाला संदीप सात-आठ वर्षोंसे कश्मीरकी राजनीतिमें सक्रिय हुए हैं । तीन-चार वर्षों पूर्व उन्होंने ‘जम्मू कश्मीर रिकांसिलिएशन फ्रंट’ बनाया । ‘यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी’से भी कथित रुपसे सम्बन्ध रखनेवाले डॉ. संदीपने ‘डॉ. संदीप मावा फाउंडेशन’ बनाया है ।

जब वृद्ध कश्मीरी पण्डित रोशनलाल मावासे यह पूछा गया कि क्या अन्य कश्मीरी पण्डितोंको घाटी लौटना चाहिए, तो उन्होंने तपाकसे कहा कि हां क्यों नहीं ? कश्मीरसे ही तो कश्मीरी पण्डित हैं; परन्तु उन्हें अपनी वापसीके नामपर राजनीतिसे दूर रहना चाहिए । मावाका मानना है कि ९९ प्रतिशत कश्मीरी अत्यधिक सहृदय हैं । एक प्रतिशत ही होंगे जो स्थितिको लकर, कश्मीरियतको लेकर कुछ और सोचते होंगें । घर वापसीपर मैं अत्यधिट संतुष्ट हूं ।

 

“उत्तम है कि रोशन लाल पुनः घाटीमें आकर बस गए हैं; परन्तु दुखद है कि इतना सब होनेके पश्चात भी भाईचारेका भूत नहीं भागा है ! रोशनलाल एक समृद्ध कश्मीरी हैं; परन्तु क्या वे लाखों कश्मीरी, जो रातों-रात अपना सब कुछ छोडकर भागे थे, वे सभी इतने ही समृद्ध हैं ? कुछ तो ऐसे हैं, जो आजतक उनकी पत्नी और पुत्रियोंपर हुए निर्मम अत्याचार, विस्मृत नहीं कर पाए हैं ! यह सत्य है कि राजनीति इस प्रकरणमें उच्च है; परन्तु यह भी उतना ही सत्य है कि भाईचारेका वहां कोई अस्तित्व नहीं है; अन्यथा जिहाद हेतु कश्मीरी युवा आतंकी न बनते ! हिन्दुत्वनिष्ठ शासनसे सभी भारतीयोंकी यही आशा है कि कश्मीरसे आतंकका मूल नष्टकर वहां कश्मीरी पण्डितोंको पुनः बसाए ।”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ



स्रोत : जागरण

 



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