पितृयज्ञं तु निर्वर्त्य विप्रश्चन्द्रक्षयेsग्निमान् ।
पिण्डान्वाहार्यकं श्राद्धं कुर्यान्मासानुमासिकं ।। – मनुस्मृति (२:१२२)
अमावस्याकी तिथिको पितृ श्राद्धकर प्रति माह पिण्डान्वाहार्यकं श्राद्ध करना एक गृहस्थ ब्राह्मणका कर्तव्य है ।
आज अनेक जन्मब्राह्मण शास्त्रोक्त धर्माचरण नहीं करते; परिणामस्वरूप उनके घरमें तीव्र स्तरका पितृदोष पाया गया है । मनुस्मृतिके इस श्लोकके आधारपर सभी पुरुष, जो जन्मब्राह्मण हैं, वे चिंतन करें कि क्या सचमें वे वर्णधर्म अनुसार धर्मपालन करते हैं ?
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