मेरी कुलदेवी समुदा मां है, परन्तु मुझे मेलदी मांका जप करनेका मन करता है; कृपया मेरा योग्य मार्गदर्शन करें - अल्पेश, सूरत


उत्तर : शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति हेतु अपने गुरुमन्त्रका या वह न मिला हो तो अपने कुलदेवताका (जिसमें कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों ही होते हैं) और यदि कुलदेवताका नाम नहीं ज्ञात हो तो सप्त उच्च देवता (शिव, गणेश, दत्तात्रेय, हनुमान, कृष्ण, राम या दुर्गाका) जप करना उचित होता है । ध्यान रखें, अध्यात्ममें मुझे क्या अच्छा लगता है, उसका कोई महत्त्व नहीं होता, अपितु मेरे लिए क्या योग्य है, यह अधिक महत्त्व रखता है; मनानुसार साधना करनेसे कोई लाभ नहीं होता मात्र मानसिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है । इसे एक उदहारणसे समझ लेते हैं, जैसे किसीको गलेका कर्करोग है और चिकित्सक उसे शल्यक्रिया करने हेतु कहते हैं; किन्तु वह कहता है कि शल्यक्रिया मुझे अच्छा नहीं लगता, मेरे रोगके निराकरण हेतु आप मुझे कोई मीठी चूसनेवाली वटि (गोली) देकर ठीक कर दें, तो क्या आप ठीक होंगे ! इसीप्रकार हम मनुष्य, जन्म-मृत्युके बन्धन रुपी रोगसे पीडित है अतः या तो जो इस बन्धनसे मुक्त हो चुके हैं, उनके मार्गदर्शनमें साधना करें या अध्यात्मशास्त्र अनुसार साधना करें, इस भवसागरसे मुक्त होनेका तीसरा कोई पर्याय नहीं है । आपके सूक्ष्म पिण्डमें जिस तत्त्वकी कमी होती है, जीवन्मुक्त सन्त आपको उस तत्त्वके अनुसार जप बताते हैं; किन्तु इस हेतु आपको अपनी पात्रता सिद्ध करनी पडती है । यदि जीवनमें गुरु न मिले तो उसे ढूंढने न जाएं, गुरु, ईश्वरीय तत्त्वके प्रतिनिधि होते हैं, वे आपके जीवनमें जब आपको आवश्यकता होती है, तब स्वयं आ जाते हैं; और जब तक उनका आपके जीवनमें स्थूल रूपसे पदार्पण न हो तबतक आप अपनी कुलदेवताका ही नाम जपें । गुरु ढूंढना चाहिए, ऐसा कुछ लोग कहते हैं, हां कुछ धर्मशास्त्रोंमें लिखा है कि गुरु प्राप्ति हेतु प्रयास करना चाहिए किन्तु उन्हें घर-घर जाकर ढूंढना चाहिए, इसका यह अर्थ नहीं है, अपितु अपनी साधना और मुमुक्षुत्वको बढाकर, योग्य गुरुकी प्राप्ति हेतु प्रयास करना चाहिए, इसका यह अर्थ है ।
  वर्तमान कालमें धर्मग्लानिकी परिसीमा हो चुकी है, ऐसेमें अधिकांश लोगोंमें सन्तको अभिज्ञान (पहचान) करनेकी क्षमता नहीं है और वर्तमान कालमें तो ९९ % सन्त गुरु पदके अधिकारी है ही नहीं, वे अध्यात्ममें उन्नत हो सकते हैं, किन्तु उनका आध्यात्मिक स्तर ७० % नहीं होता, ऐसेमें ढोंगी गुरुओंके चक्रव्यूहमें फंसनेकी सम्भावना अधिक होती है; इसलिए गुरु नहीं ढूंढना चाहिए !
जिनके मन, बुद्धि और अहंका लय हो गया हो या जिनका ईश्वरसे अनुसन्धान स्थापित हो चुका हो, उन्हें सन्त या गुरु कहते हैं, अब यह तो सूक्ष्म बात है, इसे एक सामान्य साधक तब तक नहीं समझ सकता है, जब तक उसकी स्वयंकी साधना प्रगल्भ न हो, इसलिए गुरु नहीं ढूंढना चाहिए !
अभी कुछ दिवस पूर्व एक व्यक्तिका हमारे आश्रमके ‘व्हाट्सऐप्प’पर सन्देश आया था कि मुझे लगता है कि मेरा अध्यात्मिक स्तर ५५ % हो गया है; अतः आप मुझे मेरे पिण्डमें किस तत्त्वकी कमी है, वह बता दें, मैं उसी अनुरूप जप करूंगा ! यह तो वही बात हुई कि छ: वर्षका बालक अपनी पिताजीसे जाकर कहता है कि मैं विवाह योग्य हो गया हूं; अतः आप मेरा विवाह करवा दें ! आपका स्तर ५५ % हो जाएगा तो गुरु आपके जीवनमें स्वयं आकर गुरु मन्त्र देंगे, मांगनेसे गुरु मन्त्र थोडे ही मिलता है ।
जब भी कोई व्यक्ति, जिज्ञासु, साधक या मुमुक्षु पूरी उत्कण्ठासे साधना करता है तो ईश्वरीय तत्त्व उसका मार्गदर्शन उसकी तडप, श्रद्धा, आध्यात्मिक स्तर एवं प्रारब्ध अनुरूप करने लगता है; इसलिए एकनिष्ठ होकर, साधना करें !  मांगनेसे कुछ नहीं मिलता और पात्रता निर्माण हो जाए तो सब कुछ स्वयं मिलता है, इस तत्त्वका ध्यान रखकर अपनी आध्यात्मिक पात्रता बढाए !



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