जिस प्रकार जलके भीतर सांस लेनेकी तडप होती है जब वैसी ही तडपके साथ साधक अखंड सधानारत होता है, तभी उनके जीवनमें श्रीगुरुका प्रवेश होता है | यदि सांसारिक वस्तुके प्रति अधिक आकर्षण हो तो श्रीगुरु ऐसे जीवोंको भोग विलाससे भला क्यों मुक्त करेंगे ? एक दिन तो प्रत्येक जीवात्माको ईश्वरके शरणागत होना ही है; अतः वे ऐसे जीवोंके प्रति साक्षी भाव रखते हैं |-तनुजा ठाकुर
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