शास्त्र अनुसार माता-पिता, गुरु और राजाको अपने शरणमें रहनेवालोंको योग्य एवं अयोग्य वर्तनपर तीक्ष्ण दृष्टि रखनी चाहिए । इनके संरक्षण में रहनेवाले यदि अनेक बार बतानेपर भी अयोग्य वर्तन करते हैं तो उन्हें दण्डित करना ही चाहिए, ऐसा न करनेपर वे पापके अधिकारी होते हैं । राजाको तो प्रजाद्वारा समाजघातक अपराध करनेपर मृत्युदण्ड देनेतकका अधिकार शास्त्रोंने दिया है ।
जितेन्द्रिय गुरु भी शिष्यके कल्याण हेतु ही कभी प्रेमसे कभी क्रोधसे पात्रता अनुरूप ज्ञान देते हैं ।
Leave a Reply