कलियुगमें आध्यात्मिक पथिकोंकी संख्या क्यों होती है अल्प ?


अध्यात्म त्यागका शास्त्र है जो त्याग नहीं कर सकता है, वह अध्यात्मके पथपर अगले अगले चरणोंको कभी भी साध्य नहीं कर सकता है । तन, मन, धन, प्राण, बुद्धि एवं अहं, सब कुछ ईश्वर चरणोंमें अर्पण करनेसे ही हमें ईश्वरकी प्राप्ति होती है । यद्यपि गुरुने यह किया होता है; इसलिए वे हमें इसे सहज सिखा सकते हैं । हमारे श्रीगुरुने तो सरल शब्दोंमें कहा है, “अध्यात्म त्यागका शास्त्र है !”

कलियुगमें लोगोंकी वृत्ति तामसिक होनेके कारण उन्हें त्यागसे भय लगता है; इसलिए अध्यात्मके मार्गपर कलियुगमें बहुत ही अल्प संख्यामें लोग अग्रसर होते हैं !



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