क्षणभरका कुसंग भी पतनका कारण बन सकता है !


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किसी समय कन्नौजमें अजामिल नामका एक तरुण ब्राह्मण रहता था । वह शास्त्रोंका विद्वान था, शीलवान था, कोमल स्वभावका, उदार, सत्यवादी, संयमी तथा संस्कारी था । गुरुजनोंका सेवक था, समस्त प्राणियोंका हितैषी था, मितभाषी था एवं किसीसे भी द्वेष या घृणा नहीं करता था ।

वह धर्मात्मा ब्राह्मण युवक पिताकी आज्ञासे एक दिन वनमें फल, पुष्प, अग्निहोत्रके लिए सूखी समिधा और कुश लेने गया । इन सब सामग्रियोंको लेकर वह लौटने लगा तो उससे एक भूल हो गई । वह ऐसे मार्गसे लौटा, जिस मार्गमें आचरणहीन लोग रहा करते थे । यह एक छोटीसी भूल उस ब्राह्मणके पतनका कारण बन गई ।

ब्राह्मण अजामिल जिस मार्गसे लौट रहा था, उस मार्गमें एक शूद्र एक दुराचारिणी स्त्रीके साथ मद्य पीकर निर्लज्ज विनोद कर रहा था । वह स्त्री मद्यके मदमें (नशेमें) लज्जाहीन हो रही थी । उसके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो रहे थे । अजामिलने पाससे यह दृश्य देखा । वह शीघ्रतापूर्वक वहांसे चला आया; किन्तु उसके मनमें सुप्त विचार उस क्षणभरके कुसंगसे ही प्रबल हो चुका था ।

अजामिल घर चला गया; किन्तु उसका मन उन्मत्त हो उठा । वह बार-बार मनको संयत करनेका प्रयत्न करता था; किन्तु मन उस कदाचारिणीका ही चिंतन करनेमें लगा था । अंततः अजामिल मनके इस संघर्षमें हार गया । एक क्षणके कुसंगने धर्मात्मा संयमी ब्राह्मणको पाप-सागरमें डुबा दिया । उस कदाचारिणी स्त्रीको ही संतुष्ट करनेमें अजामिल लग गया । माता-पिता, जाति-धर्म, कुल-सदाचार और साध्वी पत्नीको भी उसने छोड दिया । लोक-निंदाका कोई भय उसे रोक न सका । समस्त पैतृक धन घरसे ले जाकर उसने उसी कुलटाको संतुष्ट करनेमें लगा दिया और बात यहांतक बढ गई कि उसी स्त्रीके साथ घर बनाकर रहने लगा ।

जब एक बार मनुष्यका पतन हो जाता है तब उसका संभलना कठिन होता है । वह बराबर नीचे ही गिरता जाता है । अब अजामिलको तो उस कुलटा नारीको संतुष्ट करना था और इसका उपाय था, उसे धन देते रहना । चोरी, जूआ, छल-कपट, जिस उपायसे धन मिले, धर्म-अधर्मका प्रश्न ही अजामिलके सामनेसे हट गया । उसकी वासनाओंको तृप्त करने हेतु वह निरंतर अधर्म करता चला गया ।

 एक धर्मात्मा संयमी एक क्षणके प्रमादसे आचारहीन घोर अधर्मी और कुसंस्कारी बन गया, इस प्रकार  कुछ क्षणका कुसंग भी कितना अत्यधिक अनर्थ कर सकता है, इस कथासे हमें यह बोध मिलता है ।



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