प्रेरक-कथा


मृत पूर्वजोंके स्वप्नमें दिखाई देनेपर श्राद्ध अवश्य करना चाहिए      

देवताओंके लिए जो हव्य दिया जाता है और पितरोंके लिए जो कव्य दिया जाता है – ये दोनों देवताओंको और पितरोंको कैसे मिलते हैं ?इसके प्रत्यक्ष जानकार यमराज हैं; क्योंकि ये दोनों उनके अधिकार क्षेत्रमें आते हैं । अपनी स्मृतिमें उन्होंने कहा है कि ‘मंत्रवेत्ता ब्राह्मण श्राद्धके अन्नके जितने कौर अपने पेटमें डालता है, उन कौरोंको श्राद्धकर्ताका पिता ब्राह्मणके शरीरमें स्थित होकर पा लेता है । ब्राहमणके शरीरमें स्थित होकर पितर कैसे आहारको प्राप्त कर लेते हैं, इस सम्बन्धमें एक कथा प्रस्तुत की जा रही है :-

वनवासके समय भगवान राम और सीता पुष्कर क्षेत्रमें अपने आत्मीयजनोंसे मिलने गए । ‘अवियोगा’  नामक बावलीके दर्शनका महत्त्व यह है कि इस लोक या परलोक सभी प्रकारके बंधुओंसे वहां संयोग हो जाता है । रातको नित्य-कृत्य करनेके पश्चात् श्री रघुनाथजी सीता और लक्ष्मणके साथ वहां सोये । रात्रिमें भगवान श्रीरामका सम्पूर्ण परिवारसे मिलाप हो गया । रामजीने स्वप्नमें देखा कि उनका वैवाहिक मंगल-कार्य समाप्त हो चुका है और वे समस्त बंधु-बांधवोंके साथ बैठे हैं । उन्होंने सभीको प्रत्यक्ष-सा देखा, लक्ष्मण और सीताजीने भी इसी रूपमें देखा । प्रातः स्वप्नका वृतांत सुनकर ऋषियोंने कहा कि यह सत्य है । स्वप्नमें तुमने सभीको प्रत्यक्ष ही देख लिया है; किन्तु शास्त्रानुसार विधान है कि मृत पुरुषका जब स्वप्नमें दर्शन हो तो उनका श्राद्ध अवश्य करें ! इसलिए आज आप यहां श्राद्धकी व्यवस्था करें । भ्राताके आदेशपर लक्ष्मणजीने श्राद्धकी सब व्यवस्था कर दी । मध्याह्नके उपरान्त जब सूर्य अस्त होने लगा, तब ‘कूतप’ नामक वेला उपस्थित हुई । ठीक उसी समय निमंत्रित ऋषिगण आ पहुंचे । भगवान श्रीरामने स्मृतियोंमें बताई गई विधिके अनुसार श्राद्ध किया और ब्राह्मणोंको भोजन कराया । श्राद्धके समय सीताजी वहांसे दूर हट गईं थीं । भगवान रामने पूछा कि “तुम्हारा वहां रहना आवश्यक था तथापि तुम क्यों हट गईं ? सीताजीने कहा, ‘आपने जब पिताजीके नामका उच्चारण किया तो वे यहां आकर बैठ गए, उन्हींके साथ उन्हींकी आकृतिवाले दो पुरुष और आए, वे सुसज्जित वेश-भूषामें थे । वे तीनों ही, तीनों ब्राह्मणोंके शरीरसे सटे हुए थे । पिताजीके सम्मुख मुझे खडे रहनेमें लज्जाका अनुभव हुआ और मैं यह सोचकर दूर हट गई कि मेरे तपस्वी वेशको देखकर उन्हें कष्ट होगा ! सीताजीके वचन सुनकर भगवान श्रीरामको अत्यंत प्रसन्नता हुई और उन्होंने उनकी प्रशंसा की । (कथा पद्मपुराणके सृष्टिखण्डसे ली गई है)

यह कथा यह प्रमाणित करती है कि पितर ब्राह्मणके शरीरमें स्थित होकर श्राद्ध आदिका अन्न ग्रहण करते हैं ।



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