प्रेरक कथा


सरलतासे ईश्वर प्राप्ति

सतपुडाके वन प्रांतमें अनेक प्रकारके वृक्षोंमें दो वृक्ष सन्निकट थे ।  एक सरल-सीधा चंदनका वृक्ष था और दूसरा टेढा-मेढा पलाशका वृक्ष था । पलाश पर फूल थे । उसकी शोभासे वन भी शोभित था । चंदनका स्वभाव अपनी आकृतिके अनुसार सरल तथा पलाशका स्वभाव अपनी आकृतिके अनुसार वक्र और कुटिल था; परन्तु थे दोनों पडोसी व मित्र । यद्यपि दोनों भिन्न स्वभावके थे, परंतु दोनोंका जन्म एक ही स्थानपर साथ ही हुआ था । अत: दोनों सखा थे ।

एक दिन कुठार लेकर लकडहारे वनमें घुस आए । चंदनका वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला – ‘सीधे वृक्षको काट दिया जाता है । अत्यधिक सीधे व सरल रहनेका समय नहीं है । टेढी अंगुलीसे घी निकलता है । देखो सरलतासे तुम्हारे ऊपर संकट आ गया । मुझसे सब दूर ही रहते हैं ।’ चंदनका वृक्ष धीरेसे बोला – ‘भाई संसारमें जन्म लेनेवाले सभीका अंतिम समय आता ही है,  परंतु  दु:ख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा ? अब चलते हैं । मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे । मेरे न रहनेका दु:ख मत करना । आशा करता हूं सभी वृक्षोंके साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे ।’

लकडहारोंने आठ-दस प्रहार किए, चंदन उनके कुल्हाडीको सुगंधित करता हुआ सद्‍गतिको प्राप्त हुआ । उसकी लकडी ऊंचे मूल्यमें बेची गई । भगवानकी काष्ठ प्रतिमा बनाने वालेने उसकी बांके बिहारीकी मूर्ति बनाकर बेच दी । मूर्ति प्रतिष्ठाके अवसरपर  यज्ञ-हवनका आयोजन रखा गया । बडा उत्सव होनेवाला था।

यज्ञीय समिधा (लकडी) की आवश्यकता थी । लकडहारे उसी वन प्रांतमें प्रवेश कर उस पलाशको देखने लगे, जो कांप रहा था । यमदूत आ पहुंचे । अपने पडोसी चंदनके वृक्षकी अंतिम बातें स्मरण करते हुए पलाश परलोक सिधार गया । उसके छोटे-छोटे टुकडे होकर यज्ञशालामें पहुंचे ।

यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था । तोरण द्वार बना था । वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे । समिधाको पहचान कर काष्ठमूर्ति बन चंदन बोला – ‘आओ मित्र ! ईश्वरकी इच्‍छा बडी बलवान है । पुनः  तुम्हारा हमारा मिलन हो गया । अपने वनके वृक्षोंका कुशल मंगल सुनाओ । मंदिरमें पंडित मंत्र पढते हैं और मैं मनमें जंगलको  स्मरण करता  रहता हूं ।

पलाश बोला – ‘देखो, यज्ञ मंडपमें यज्ञाग्नि प्रज्ज्वलित हो चुकी है । लगता है कुछ ही क्षणोंमें राख हो जाऊंगा । अब नहीं मिल सकेंगे । मुझे भय लग रहा है । ‍अब बिछडना ही पडेगा।’

चंदनने कहा – ‘भाई मैं सरल व सीधा था । मुझे परमात्माने अपना आवास बनाकर धन्य कर‍ दिया । तुम्हारे लिए भी मैंने भगवानसे प्रार्थनाकी थी अत: यज्ञीय कार्यमें देह त्याग रहे हो ! अन्यथा दावानलमें जल मरते । सरलता भगवानको प्रिय है । अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोडना । सज्जन कठिनतामें भी सरलता  नहीं छोडते, जबकि दुष्ट सरलतामें भी कठोर हो जाते हैं । सरलतामें तनाव नहीं रहता । तनावसे बचनेका एक मात्र उपाय सरलतापूर्ण जीवन है ।’

संत तुलसीदासके रामचरितमानसमें भगवानने स्वयं ही कहा है –

निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।

अचानक पलाशका मुख एक आध्‍यात्मिक दीप्तिसे चमक उठा ।



One response to “प्रेरक कथा”

  1. Arunesh Dixit says:

    Pranaam Maa. Aap ke sabhi prerak prasngon se mujhe seekhne ko milta hai. Dhany hain aap jise ishvar ne bheja hai. Aap sahi me ek Maa hain. Jaise Maa apne bacchon ka poshan karti hai usi tarah aap bhi hum sabka adhyatmik poshan kar rahi hai. Koti Koti Namaskaar !!

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