फाल्गुन कृष्ण पक्ष नवमीको (विक्रम संवत अनुसार) अर्थात् २० फरवरी २०१७ को समर्थ रामदास स्वामीजीकी पुण्यतिथि है, आइए ! उनके जीवनसे सम्बन्धित प्रेरक प्रसंगके विषयमें जानते हैं, जिससे उनके आध्यात्मिक सामर्थ्यका भी हमें बोध होगा ।
समर्थ रामदास स्वामी भिक्षा मांगकर अपना पेट भर लेते थे और भगवानकी भक्तिमें लीन रहते थे । एक दिन वे भिक्षा मांगते हुए एक घरपर पहुंचे । वहां उनके भिक्षाटन हेतु याचना करते ही घरकी स्त्रीका पारा चढ गया । वह चौका लीप रही थी ।
वाणी सुनते ही वह पोतना लेकर बाहर आई और स्वामीजीपर फेंककर बोली, “ले, इसे ले जा ।”
स्वामीजी इसपर तनिक भी दु:खी नहीं हुए । पोतना लेकर वे नदीपर गए । वहां जाकर अपना शरीर धोया और पोतना स्वच्छ किया । रातको उसी पोतनेमें से एक टुकडा फाडकर बत्ती बनाई और घीमें भिगोकर दीपक जलाकर भगवानकी आरती, तत्पश्चात् प्रार्थना की, “हे प्रभु ! इस दीपकके प्रकाशसे जैसे यहांका अन्धकार दूर हो गया है, वैसे ही इस वस्त्रको देनेवाली माताके हृदयका अन्धकार भी दूर हो ।” अगले दिन वे देखते क्या हैं कि वह स्त्री उनके आश्रममें आई और अपने किएपर पश्चाताप करने लगी ।
इस प्रसंगसे यह सीख मिलती है कि सन्तद्वारा शुद्ध हृदयसे की गई प्रार्थनाका प्रभाव अवश्य पडता है ।
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