मुझसे लोग पूछते हैं कि इतने सारे ढोंगी गुरु चारों ओर बिलबिला रहे हैं ऐसेमें खरे संतोका अभिज्ञान(पहचान) कैसे करें और उनका महत्त्व घट रहा है ऐसा क्यों हो रहा है ?
एक सरल सा तथ्य ध्यान रखें, जब राजा अधर्मी हो जाये और संत ढोंगी बन, लोगोंकी आस्थाको तोडने लगे तो ऐसा कालको ही कलियुग कहते हैं ! साथ ही कलियुगी जीवकी वृत्ति भी गुरुओं और संतोंसे मात्र सांसारिक वस्तु लेनेकी होती है देनेकी प्रवृत्ति नहीं होती; अतः कलियुगी बारिशका प्रकोप रूपी रोग है – ढोंगी गुरु और दिखावटी भक्त ! ये स्वतः ही उग आते हैं ! यदि उच्च कोटिके संतका आपके अभिज्ञान करना है तो योग्य और निष्काम साधना करें, आपके जीवन उनका पदार्पण स्वतः ही हो जाएगा | इस हेतु उस निर्गुण परमेश्वरके सगुण आधार अर्थात किसी भी उच्च कोटिके देवताकी निष्ठासे आराधना करें और धर्मरक्षण हेतु कृतिशील बनें, उच्च कोटिके संत, आपसे स्वयं संपर्क करेंगे और अपना अभिज्ञान भी आपको सूक्ष्मसे करायेंगे, ऐसा अध्यात्मशस्त्र कहता है ! – तनुजा ठाकुर
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