जब हम किसी व्यक्तिके व्यक्तिगत कष्ट दूर करने हेतु प्रार्थना करते हैं और यदि हमारा आध्यात्मिक स्तर ६०% से न्यून हो तो हमारी साधना द्रुतगतिसे व्यय होती है; क्योंकि क्षमता न होते हुए भी हम या तो उस व्यक्तिके प्रारब्धमें हस्तक्षेप कर रहे होते हैं या उस व्यक्तिको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियोंसे उसे बचानेका प्रयत्न कर रहे होते हैं, दोनों ही स्थितियोंमें हमारी साधना व्यय (खर्च) हो जाती है; अतः आध्यात्मिक क्षमता न होते हुए भावनामें बहकर दूसरोंके लिए प्रार्थना करना अयोग्य है । इसके विपरीत आध्यात्मिक क्षमता बढाकर, हम मात्र अपनी संकल्प शक्तिसे अनेक जीवोंका कल्याण कर सकते हैं ! हमारे ऋषि, मुनि और सन्तोंने ऐसी अनेक प्रार्थनाएं लिखी हैं जिन्हें हम ‘स्तोत्र’ कहते हैं, उनमें उनके संकल्प समाहित होनेके कारण वे चिरन्तन फलदायी होते हैं ।
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