किसीको साधना पथसे च्युतकर, उसे पुनः मायामें ले जाना भी पाप है, यह ध्यान रहे !


देहलीके एक व्यक्ति ‘उपासना’के सेवाकेन्द्रमें आए थे, वे सेवाकेन्द्रमें सेवारत एक युवा साधकको कहने लगे कि मैं आपकी चाकरी (नौकरी) लगवा देता हूं, आप वह करें ! उन साधकने निर्णय लिया है कि वे कुछ समय पूर्ण समय साधना करेंगे; परन्तु वे आगंतुक उन्हें बार-बार बोल रहे थे कि आप चाकरी करें और साथमें साधना भी कर सकते हैं । वर्तमान समयमें अधिकसे अधिक समय साधनाको देना परम आवश्यक है, आनेवाले भीषण समयमें यदि हमारा आध्यात्मिक स्तर ५०% से अधिक हुआ तो ही हम सुरक्षित रहेंगे, यह बात अनेक बार अनेक सन्तोंने बताई है । देहली जैसे नगरमें चाकरी कर हम कितनी देर सेवाकर सकते हैं, आप स्वयं सोचें और कोई युवा साधक यदि पूर्ण समय साधना करना चाहता है तो उसे हमें प्रोत्साहित करना चाहिए न कि उसे पुनः मायामें ले जानेका प्रयत्न करना चाहिए । आज इस देशको साधक वृत्तिवाले ऐसे ही एक युवा सेनाकी राष्ट्ररक्षण और धर्मजागृतिके कार्यमें योगदान देनेकी परम आवश्यकता है और तभी साधक भी स्वयं और अपने परिवारकी रक्षा आनेवाले समयमें कर सकेंगे, जब उनकी साधना और भावमें अखण्डता होगी । वर्तमान कालको संधिकाल कहा गया है, ऐसे समयमें साधनाको प्रधानता देनेसे हमारी आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गतिसे होती है । मैंने उस साधकको न ही पूर्ण समय साधना करनेके लिए कहा है और न ही सन्यास लेनेके लिए; परन्तु यदि उसे साधना करनेमें आत्मसन्तुष्टि मिलती है और उसमें भविष्यको लेकर असुरक्षाकी भावना भी नहीं है तो क्या पूरी सृष्टिका पालन-पोषण करनेवाले परमेश्वर, उस साधकका ध्यान नहीं रखेंगे ? किसीको साधना पथसे च्युतकर उसे पुनः मायामें ले जाना भी पाप है, यह ध्यान रहे !



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