कुलदेवताके जपका महत्व


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१. ” कुल” अर्थात मूल, और मूलका संबंध मूलाधार चक्र, शक्ति या कुण्डलिनीसे होता है | कुल + देवता, अर्थात जिस देवताकी उपासनासे मूलाधार चक्र जागृत होता है, अर्थात अध्यात्मिक उन्नति आरम्भ होती है, उन्हें कुलदेवता कहते हैं |

२. कुलदेवताके नाममें सर्व ३३ कोटी देवताके तत्त्व समाहित होते हैं |

३. कुलदेवता पृथ्वी तत्त्वके देवता हैं, इसलिए इनकी उपासनासे साधना आरम्भ करनेपर कष्ट नहीं होता | अपने मनसे तेजोपासना करनेसे, जैसे गायत्री मंत्र उच्चारण करनेसे, आध्यात्मिक क्षमता कम होने पर कष्ट भी हो सकता है |

४. कुलदेवताका जप पूर्ण होनेपर, सद्गुरुका प्रवेश स्वत: ही हो जाता है |

५. कुलदेवता हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रगति हेतु उत्तरदायी देवता हैं |

६. हम गंभीर बीमारीमें स्वनिर्धारित औषधि नहीं लेते; उस क्षेत्रके विशेषज्ञ, अर्थात डॉक्टरके मतानुसार लेते हैं | उसी प्रकार भवसागरमें फंसनेके गंभीर रोगसे बचनेके लिए अध्यात्मविदके मार्गदर्शन अनुसार साधना करना आवश्यक है | ऐसे सत्पुरुष समाजमें कम ही मिलते हैं | ऐसेमें प्रश्न उठता है कि किस नामका जप किया जाय ? भगवानने हमारी इस अड़चनका भी निराकरण किया है | उन्होंने प्रत्येक व्यक्तिको उसकी उन्नतिके लिए योग्य तथा आवश्यक कुलमें जन्म दिया है | हम बीमारीमें अपने नियमित (फॅमिली) डॉक्टरके पास जाते हैं, क्योंकि उन्हें हमारी शरीर-प्रकृति व बीमारीकी जानकारी रहती है | यदि किसी कार्यालयमें शीघ्र काम करवाना हो, तो हम परिचित व्यक्तिके पास जाते हैं | उसी प्रकार ३३ करोड़ देवताओंमेंसे कुलदेवताके प्रति ही हमें अपनापन लगता है; वही हमारी पुकार सुनने वाले व आध्यात्मिक उन्नतिके लिए उत्तरदायी होते हैं | जब ब्रह्माण्डके सर्व-तत्त्व पिंडमें आ जाते हैं तब साधना पूर्ण होती है |

सर्व प्राणियोंमें केवल गायमें ही ब्रह्माण्डके सर्व देवताओंकी स्पंदन-तरंगोंको ग्रहण करनेकी क्षमता है, इसीलिए कहा गया है कि गायके उदरमें ३३ करोड़ देवता वास करते हैं | उसी प्रकार ब्रह्माण्डके सर्व तत्त्वोंको आकर्षित कर, उनमे ३०% तक लानेकी क्षमता केवल कुलदेवताके नामजपमें है | इसके विपरीत शंकर, विष्णु, गणपति, लक्ष्मी इत्यादि देवताओंका नामजप केवल विशिष्ट तत्त्वको बढ़ानेके लिए होता है |-तनुजा ठाकुर



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