धर्मप्रसारके मध्य मैंने पाया है कि कुलदेवताका (कुलदेव या कुलदेवी, दोनों इसके अन्तर्गत आते हैं) नाम सामान्यत: पंजाब, देहली और उत्तर प्रदेशके पश्चिमी भागको छोडकर अधिकांश लोगोंको ज्ञात होता है, किन्तु जिन्हें ज्ञात नहीं है, वे क्या कर सकते हैं, यह बताती हूं –
१. आपके उपनाम (टाइटल) और गोत्रके लोगोंके कुलदेवता एक ही होते हैं; अतः आप उनसे पूछ सकते हैं ।
२. अपने मूल ग्रामके वयोवृद्ध एवं कुलपुरोहित या ग्रामके वृद्ध पुरोहितसे पूछ सकते हैं ।
३. ब्राह्मणों एवं राजपूतोंकी वंशावलीवाली पुस्तकें मैंने देखी हैं, वैसे ही आपकी जातिकी वंशावलीकी पुस्तक यदि हो तो भी आप प्राप्त कर अपनी कुलदेवीका नाम जान सकते हैं ।
४. हरिद्वार, बद्रीनाथ जैसे तीर्थस्थानोंपर जहां हमारे पूर्वज अपना नाम लिखवाते थे, उन पण्डोंसे भी अपनी कुलदेवी ज्ञात कर सकते हैं । ऐसे स्थानोंपर हमारे पूर्वज अपने मूल ग्रामके नामसे अपना खाता चलाते थे और प्रत्येक स्थानके भिन्न पण्डे होते हैं ।
५. यदि ऐसे प्रयत्नोंसे ज्ञात न हो तो ‘श्री कुलदेवतायै नमः’, यह जप आर्त भावसे करने और प्रार्थना करते रहनेसे भी अनेक लोगोंको उनके कुलदेवताका नाम किसी न किसीके माध्यमसे ज्ञात हो गया है, ऐसा मैंने धर्मप्रसारके मध्य पाया है ।
६. यदि यह भी करना सम्भव न हो तो अपने इष्टदेवताको कुलदेवता मानकर, उनकी आराधना करें, इससे भी आवश्यकता पडनेपर कुलदेवताका नाम ज्ञात हो जाता है ।
७. आपके कुलदेवताका नाम आपकी भावी पीढीको भी ज्ञात रहे; इसलिए अपने मूलस्थानको (मूल ग्रामको) कभी नहीं त्यागना चाहिए । यदि आप नगर, महानगर या विदेशमें जाकर बस जाते हैं तो अपने मूल ग्राममें कुलदेवताके स्थानपर वर्षमें एक बार अवश्य जाना चाहिए, इससे हमारी आनेवाली पीढीको कुलदेवताका नाम और कुलाचार पालन ज्ञात रहता है !
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