लोगोंमें किन-किन बातोंको लेकर अहं हो सकता है, इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।
कुछ समय पूर्व एक तथाकथित समाजसेवक हमारे आश्रममें पधारे थे । वे हमारे एक कार्यकर्ताके परिचित थे । उन्होंने बातों ही बातोंमें बताया कि वे लोगोंके दुःख दूर करते हैं । उनके पास सब दुखी लोग आते हैं । मैंने उनसे पूछा कि वे लोगोंके दुःखको कैसे दूर करते हैं ? तो उन्होंने बताया कि सम्पूर्ण भारतमें राजनेतासे लेकर उच्च पदस्थ शासकीय पदाधिकारियोंसे उनका परिचय है और वे उन्हें उत्कोच(घूस) देकर सबका भला करते हैं जिसमें उनका भी एक भाग रहता है !
वे जब बार-बार अपने इस तथाकथित समाजसेवाका महिमा मण्डन करते रहे तो मैंने उन्हें विनम्रतासे कहा, “आपमें समाजसेवाकी वृत्ति है, यह तो अच्छी बात है; किन्तु आप यह सब अधर्मका आधार लेकर कर रहे हैं और आप उस उत्कोचमेंसे थोडा अंश लेकर अपना भी जीवनयापन करते हैं तो आपको इन सबका फल इस जन्म या अगले जन्ममें पापके रूपमें भोगना ही पडेगा । योगासन और प्राणायामसे ये पाप नहीं धुलेंगे ।” वे नियमित ढाई घण्टे योगासन और प्राणायाम करते हैं और उन्हें लगता है कि वे बहुत बडे साधक हैं; अतः इस भ्रष्टाचारी व्यावस्थामें पापकर, वे लोगोंके दुःख दूरकर बहुत पुण्यका कार्य कर रहे हैं ।
मैंने उनसे प्रेमसे कहा “अपने जीविकोपार्जनकी कोई पर्याय व्यवस्था सोचकर रखें; क्योंकि हिन्दू राष्ट्र आने ही वाला है और उसके पूर्व सभी भ्रष्टाचारी लोगोंका ईश्वरीय विधान अनुरूप सर्वनाश निश्चित ही होगा , ऐसा अनेक सन्तोंने कहा है ।”
उन्होंने कहा,”यह तो असम्भव है ।” मैंने कहा, “सात्त्विक बनें तो आपको सन्तोंकी बातोंपर विश्वास होगा ।”
वे जिस दिवस आश्रममें आए थे, उस दिवस उनके जानेके पश्चात रात्रिमें एक विकराल छविका आभास हुआ जो एक शक्तिशाली असुर था एवं कुछ क्षणोंके लिए मेरे रोंगटे खडे हो गए । मैं समझ गई उस समाजसेवकके साथ ही वह असुर आया होगा । उस सम्पूर्ण रात, सूक्ष्म युद्ध हुआ और मेरी निद्रा प्रातः सवा छः बजे खुली और मेरा अग्निहोत्र भी उस दिवस छूट गया ! आजतक ऐसा कभी भी नहीं हुआ है कि मैं प्रातः पांच बजेके पश्चात उठी होउंगी । यहां तक कि मैं बहुत थक भी जाऊं या रात्रि बारह बजे भी सोऊं तो भी मैं तीन बजेके स्थानपर प्रातः अधिकसे अधिक चारसे साढे बजेके मध्य तो उठ ही जाती हूं ।
तमोगुणी लोगोंके आनेसे हमारा आश्रम या घर किसप्रकार अपवित्र हो जाता है, इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति हुई और जब मैंने हमारे कार्यकर्ताको उन्हें संकेतमें वापस ले जानेको कहा तो वे जानेको सिद्ध ही नहीं हो रहे थे; क्योंकि आश्रम परिसरके चैतन्यसे उनपर आध्यत्मिक उपचार हो रहा था और इसकारण उन्हें अच्छा लग रहा था ।
जाते-जाते उन्होंने मुझे कहा, “आपको मैंने बताया नहीं कि लोग मुझे गुरुजी कहते हैं !”
मैंने मनमें सोचा दो चार वर्ष रह गए है एक बार हिन्दू राष्ट्र आ जाए आपको आपका गुरुत्व समझमें आ जाएगा । (२०.८.२०२०)
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