महालक्ष्मी अष्टकम्


इन्द्रदेवने एक बार जब अपना ऐश्वर्य, यश, सम्मान खोया तो उसे पुनः पाने हेतु उन्होंने भी सुख और ऐश्वर्यकी देवी माता लक्ष्मीकी उपासना की । महालक्ष्मीको प्रसन्न करनेके लिए इन्द्रदेवने उनकी स्तुति की । इसी इन्द्र स्तुति से स्वर्ग और उनका ऐश्वर्य उन्हें पुनः प्राप्त हुई । इन्द्रकृत लक्ष्मीस्तुतिका पाठ शुक्रवारके दिन विशेष प्रभावी माना गया है । वैभव, सुख, आनन्दके लिए इस दिन महालक्ष्मीकी यथाविधि पूजनके पश्चात् इस स्तुतिका पाठ किया जात है । व्यावहारिक दृष्टिसे यह लक्ष्मी स्तुति सुख ऐश्वर्यकी प्राप्ति करवाकर सम्पन्नता लाती है । प्रस्तुत है हिन्दी अर्थ सहित इन्द्रदेव रचित महालक्ष्मी स्तुति –

इन्द्र उवाच्  –
नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।

शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥१॥
अर्थ :
इन्द्र बोले – श्रीपीठपर स्थित और देवताओंसे पूजित होनेवाली हे महामाये, तुम्हें नमस्कार है। हाथमें शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है ।

नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥२॥
अर्थ :
गरुडपर आरूढ हो कोलासुरको भय देनेवाली और समस्त पापोंको हरनेवाली हे भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें प्रणाम है ।

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥३॥
अर्थ :
सब कुछ जाननेवाली, सबको वर देनेवाली, समस्त दुष्टोंको भय देनेवाली और सबके दु:खोंको दूर करनेवाली, हे देवि महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है ।

सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥४॥
अर्थ :
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देनेवाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है ।

आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥५॥
अर्थ :
हे देवि ! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ति ! हे महेश्वरी ! हे योगसे प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी, तुम्हें नमस्कार है ।

स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥६॥
अर्थ :
तुम स्थूल सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति महोदरा हो और बडे-बडे पापोंका नाश करनेवाली हो । हे महालक्ष्मी, तुम्हें नमस्कार है ।

पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥७॥
अर्थ :
हे कमलके आसनपर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी ! हे परमेश्वरी ! हे जगदम्बे, हे महालक्ष्मी ! तुम्हें नमस्कार है ।

श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते ॥८॥
अर्थ :
हे देवी, तुम श्वेत वस्त्र धारण करनेवाली और नाना प्रकारके आभूषणोंसे विभूषिता हो । सम्पूर्ण संसारमें व्याप्त एवं अखिल लोकोंको जन्म देनेवाली हो । हे महालक्ष्मी, तुम्हें मेरा प्रणाम है ।

महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ॥९॥
अर्थ :
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्रका सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभवको प्राप्त कर
सकता है ।

एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित: ॥१०॥
अर्थ :
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है उसके बडे-बडे पापोंका नाश हो जाता है, जो प्रतिदिन दो समय पाठ करता है वह धन-धान्यसे सम्पन्न होता है ।

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ॥११॥
अर्थ :
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान् शत्रुओंका नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं ।
 इतीन्द्रकृतम् महालक्ष्म्यष्टकम् सम्पूर्णं ॥



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