मानसिक कष्ट (मनोरोग) होनेपर क्या करें ? (भाग-१)


आज समाजके अनेक लोगोंको मध्यमसे तीव्र स्तरका मानसिक कष्ट है | इसका मूल कारण साधना और धर्माचरणके अभावके कारण बढा हुआ रज-तम ही है | इस लेख शृंखलामें इस कष्टसे सम्बन्धित कुछ दृष्टिकोण देनाका एक तुच्छसा प्रयास करने जा रही हूं |सर्वप्रथम मनोरोगका अभिज्ञान करनेके कुछ लक्षण इसप्रकार हैं – इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिकतर मानसिक रोगोंके लक्षण लगभग समान ही होते हैं। कोई भी मानसिक रोग इससे प्रभावित व्यक्तिके जीवनको बुरी तरहसे प्रभावित करता है, इसीलिए इसे रोग, सिंड्रोम, या डिसॉर्डर कहा जाता है । मानसिक रोगोंके मुख्य लक्षण निम्न प्रकार होते हैं।

* सामाजिक लोगोंसे कटाव और अकेले रहना । 

*कामकाजमें असामान्यता, विशेष रूपसे विद्यालय या अपने कार्यस्थलपर, खेल आदिमें अरुचि, पढाई-लिखाईमें असफल रहना आदि ।

* एकाग्रतामें समस्या, स्मरणशक्ति अशक्त(कमजोर) होना, या समझनेमें कठिनाई होना ।

* गंध, स्पर्श व कुछ विशिष्ट स्थानोंके प्रति अधिक संवेदनशीलता व उत्तेजना ।

* किसी भी गतिविधिमें भाग लेनेके लिए इच्छाकी कमी  या उदासीनता ।

* अपने आपसे ही काट-कटा अनुभव करना ।  

* भय या दूसरोंके प्रति संदेह या स्वयंपर विश्वास न होना, घबराना ।

* अस्वाभाविक और विचित्र व्यवहार ।

* नाटकीय नींद और भूखमें परिवर्तन या व्यक्तिगत स्वच्छतामें कमी ।

* भावनाओं या वर्तनमें उग्रता या नाटकीय परिवर्तन होना । 

* सदैव नकारात्मक रहना 

* आत्महत्याके प्रयास करना* किसी वस्तु या मादक पदार्थकी अत्यधिक व्यसन होना एवं उसके बिना न रह पाना  – तनुजा ठाकुर   (क्रमश:)



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