जून १०, २०१८
इस्लामिक विद्वानने अपने एक अन्य सम्बोधनमें यह भी कहा है कि कार्यालयमें पुरुषोंद्वारा महिलाओंका उत्पीडन होने जैसी घटनाएं होती हैं; क्योंकि ये पुरुषोंकी जैविक प्रणालीमें (बायोलॉजिकल सिस्टम) है । मौलानाने कहा था कि कार्यालयमें जब महिला कर्मचारी और पुरुष कर्मचारी एक -दूसरेके साथ सुविधापूर्ण (कम्फर्टेबल) हो जाते हैं तो उत्पीडन जैसी घटनाएं होती हैं ।
सामाजिक संचार वाहनपर इस समय अमेरिकामें रहने वाले इस्लामिक विद्वानका ‘वीडियों’ काफी फैल रहा है । इसमें ‘सईद मोहम्मद बाकर अल-काजविनी’ यह कह रहा हैं कि महिलाओंके लिए ‘काफिर’ बननेसे अच्छा है कि वे सेवक बन जाएं ! पाकिस्तानी मूलके कनाडाई लेखक तारिक फतेहने भी अपने ‘ट्विटर’पर इस वीडियोको सांझा किया है । फतेहने लिखा, ‘‘यूएसए और कनाडामें किसी स्थानपर एक इस्लामिक मौलानाने ईसाई और गैर-मुस्लिमोंको लक्ष्य बनाया । मौलानाने युद्धमें बन्दी गैर-मुस्लिम महिलाओंको उनकी कामवासनाका दास बनानेका पक्ष लेते हुए कहा कि इससे उन्हें इस्लाममें परिवर्तित किया जा सकता है !’’
इस ‘वीडियो’को पहले आयशा मुर्ताद नामके उपभोक्ताने सांझा किया था । ‘वीडियो’में सईद मोहम्मद कहते हैं, ‘‘इस्लाम ‘काफिर’ होना सबसे बडा रोग मानता है । बस अल्लाहपर विश्वास करो ! अल्लाहपर विश्वास न करने वाली समाजमें रहने वाली महिलाओंको इससे सुरक्षित रखनेकी आवश्यकता है । इस्लाम इन महिलाओंको ‘काफिरों’से सुरक्षित करता है । इस्लाम उन्हें पकडकर मुस्लिम समुदायमें लेकर जाता है, यह समुदाय एक अच्छा समुदाय है । इस समुदायमें लोगोंको अल्लाहका भय है, लोग यहां अपने दासोंके साथ अन्याय नहीं कर सकते; इसलिए इस्लाम इन महिलाओं और बच्चोंको ‘हेल्दी मुस्लिम सोसायटी’में ले जाता है, वहां रखता है और अन्तमें उन्हें छोड दिया जाता है; इसलिए पहले उन्हें अपने समाजमें लाते हैं, उन्हें रखते हैं, बच्चोंको बडा करते हैं, महिलाओंको शिक्षित करते हैं, युद्धमें बन्दी बनाई महिलाओंमें से भी कुछके साथ ऐसा करते हैं और अन्तमें उन्हें छोड दिया जाता है । ऐसा करके आप उनके साथ अच्छा ही करेंगे; क्योंकि आप उन्हें ‘काफिर’ समाजसे बचाते हैं ।’’
इसके अतिरिक्त उसने अपने एक अन्य सम्बोधनमें यह भी कहा है कि कार्यालयमें पुरुषोंद्वारा महिलाओंका उत्पीडन होने जैसे प्रकरण होते हैं; क्योंकि ये पुरुषोंके जैविक प्रणालीमें है । इसका एक ही हल है कि महिला और पुरुषोंको एक साथ कार्य नहीं करना चाहिए । दोनों के लिए अलग -अलग कार्यालय होना चाहिए ।
स्रोत : जनसत्ता
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