जीवनदायिनी गंगामें विष , संकटमें जलीय जीव


जीवन और मोक्ष प्रदान करने वाला गंगाजल अब जीव-जंतुओंके लिए विषका काम कर रहा है। सर्वविदित है कि गंगाजलमें कीडे नहीं पडते, लेकिन गंगाके जलमें जैवविविधताका समाप्त होते जाना समूचे नदी तंत्रके लिए चिंताका सूचक है। १३ मईको कन्नौज, उत्तरप्रदेशके मेहंदीघाटमें लाखों मृत मछलियां गंगा तटपर उतराते हुए मिलीं। १४ मईको बिल्हौरके गिल्बर्ट अमीनाबाद, सजंती बादशाहपुर, बहरामपुर घाटोंपर भी यही दृश्य देखनेको मिला। विशेषज्ञ इसे गंभीर संकट बताते आए हैं। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादूनके दलने कानपुरमें गंगा बैराजसे होते हुए इलाहाबादकी ओर से आगे बढते हुए गंगाका सर्वेक्षण किया तो स्थिति चौंकाने वाली मिली। प्रदूषणके चलते गंगामें जलीय जीवन संकटमें हैं।

पर्यावरण संतुलनके लिए जलीय जीवोंका गंगामें रहना आवश्यक है। कछुएं, ऊदबिलाव, रोहू, कतला और नैन मछलियां तो छोडिए, गंगामें प्रदूषण बढनेके कारण गैंगेटिक डॉल्फिन भी कम होती जा रही हैं। सर्वे करने वाले दलको बैराजसे लेकर फतेहपुर स्थित भिटौरा तक के ८० किलोमीटरकी यात्रामें केवल ५० डॉल्फिन दिखीं, वह भी भिटौराके पास ही।

सदस्योंका कहना था कि भिटौराके पास जहां ये डॉल्फिन मिलीं, वहां गंगाका जल स्वच्छ था, इसकी गुणवत्ता भी ठीक थी और जल पर्याप्त मात्रा में था। दलके सदस्योंको उससे पहले कई किलोमीटरकी यात्रामें इतना गंदा पानी और गाद मिली कि कई बार मोटर नाव खींचकर ले जानी पडी थी। बैराजसे ही डोमनपुर तक गंगामें जलीय जीव नहीं मिले।

ये मछलियां हैं गंगामें

गंगामें कॉमन कॉर्प, सिल्वर कॉर्प, ग्रासकॉर्प प्रजातिकी मछलियां बहुतायत में पाई जाती हैं। रोहू, कतला और नैनकी (मृगल) संख्या तेजी से कम हुई है। डॉल्फिन भी तेजी से कम हुई हैं।

इतनी ऑक्सीजनकी आवश्यकता
गंगामें मछलियों व अन्य जलीय जीवोंके जीवनके लिए कम से कम चार मिलीग्राम प्रतिलीटर घुलित आक्सीजनकी (डीओ) आवश्यकता होती है जबकि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) तीन मिलीग्राम प्रति लीटरसे अल्प होनी चाहिए।

जैवविविधताकी आवश्यकता

पारिस्थितिकीमें हर जीवका अपना महत्व है। कछुआ सडी-गली मृत मछलियों, जीवोंके शवों आदि को खाकर जलको स्वच्छ करता है। मगरमच्छ भी यही काम बडे स्तर पर करता है। घडियाल मछलियोंकी संख्याको नियंत्रित करने में सहायक होता है। ऊदबिलाव छोटे जीवोंको खाता है। रोहू छोटी मछलियोंको खाकर पारिस्थितिकी तंत्रको ठीक करती है। नदीमें इन जीवजंतुओंके नष्ट हो जाने से नदीका संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र बिगड सकता है, जो नदीके स्वास्थ्यके लिए हानिकारक सिद्ध होगा।

७० प्रतिशत घरेलू उत्प्रवाह, १५ से २० प्रतिशत औद्योगिक उत्प्रवाह व १० प्रतिशत अन्य स्नोतोंसे गंगामें प्रदूषणकी मात्रा बढ रही है। इस पर अंकुश लगाना अत्यावश्यक है।



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