मृत जीवात्माओंको गति देना खेल नहीं !


एक सिक्थ-वर्तिका (मोमबत्ती) जलानेसे और दो मिनट मौन रखनेसे यदि मृत आत्माको शान्ति (गति) मिल जाती तो भगीरथ मुनिको पूर्वजोंकी गति हेतु साठ सहस्र वर्ष तपस्या कर गंगाको पृथ्वीपर क्यों लाना पडता ? वे भी दो मिनट मौन रखते एक सिक्थ-वर्तिका जलाते और उनके सारे पूर्वज शान्त हो जाते ! वैदिक सनातन धर्ममें अतृप्त जीवात्माकी शान्ति हेतु प्रतिदिन काकबलि, जल-तिल तर्पण, पाक्षिक श्राद्ध, मासिक श्राद्ध, वार्षिक श्राद्ध, पितृपक्षमें श्राद्ध, नारायण बलि, नागबली, त्रिपिण्डी श्राद्ध इत्यादि जैसी कठोर कर्मकाण्डकी विधियां हमारे द्रष्टा सन्त, ऋषि-मुनि क्यों प्रतिपादित करते ?, वे भी हमें एक मोमबत्ती जलाने और दो मिनट मौन रखनेके लिए बताते ! यदि सरल विधानसे मृत आत्माको गति मिल जाती तो इतना कठिन विधान, शास्त्रोंमें क्यों बताया जाता ? इस सम्बन्धमें किंचित आधुनिकता एवं पाश्चात्यावाद रूपी रोगसे ग्रस्त हिन्दू सोचें ! हिन्दू धर्मके इतने प्रगत और वैज्ञानिक शास्त्रका आधार छोड आजके हिन्दू अवैज्ञानिक और पैशाचिक पाश्चात्य संस्कृतिका अंधा अनुकरण करनेमें अपना गौरव समझते हैं, यही इस देशकी विडम्बना है ! इससे ही समझमें आता है कि आजके पढे-लिखे आधुनिक बुद्धिभ्रष्ट जन्म-हिन्दुओंको धर्म और सूक्ष्म जगतका ज्ञान देना कितना आवश्यक है ?



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