कुछ साधक साधना तो करते हैं; किन्तु वे उसे क्यों कर रहे हैं ? यह भी उन्हें ज्ञात नहीं होता है; इसलिए सर्वप्रथम यह जान लें कि मनुष्य जीवनका मुख्य उद्देश्य है ईश्वरप्राप्ति करना एवं यह साधनाद्वारा ही यह साध्य हो सकता है ! चाहे कोई जिज्ञासु किसी भी मार्गसे साधना करना चाहे या कोई साधक किसी भी योगमार्गसे साधनारत हो, दोनोंके लिए ईश्वरप्राप्ति हेतु कुछ गुणोंका होना आवश्यक होता है एवं सभी गुणोंमें सबसे आवश्यक गुण है, तीव्र मुमुक्षुत्वका होना । मोक्ष प्राप्तिकी तीव्र इच्छाको मुमुक्षुत्व कहते हैं । जिस साधकके पास यह गुण होता है, वह साधना पथपर आनेवाली सारी बाधाओंको पार कर उस परम सत्तासे एकरूप हो जाता है । तो आइए ! मुमुक्षुत्व क्या होता है ? इसे एक प्रेरक प्रसंगके माध्यमसे समझ लेते हैं !
एक बार रामकृष्ण परमहंससे एक शिष्यने पूछा “ईश्वरप्राप्ति हेतु सबसे आवश्यक गुण कौनसा है ? स्वामीजीने सहजतासे कहा, “मुमुक्षुत्व”। शिष्यने पूछा, “मुमुक्षुत्व किसे कहते हैं ?”
स्वामीजी बोले, “समय आनेपर बताऊंगा ।” दो चार दिवस निकल गए, स्वामीजी इस विषयपर कुछ नहीं बोले । एक दिन स्वामीजी उसी शिष्यके संग, गंगा स्नानके लिए गए । जैसे ही शिष्यने गंगामें डुबकी लगाई, स्वामीजीने उसकी गर्दनपर हाथ रख उसके सिरको भीतर ही जलमें डाले रखा, शिष्य सांस लेनेके लिए गर्दन बाहर निकालनेका थोडा भी प्रयत्न करता तो स्वामीजी उसे ऐसा करने नहीं देते, कुछ ही क्षणमें जब शिष्यको लगा, अब तो मेरे प्राण निकल जाएंगे, तब स्वामीजीने उसकी गर्दनसे अपनी पकड हटा ली, शिष्यने सिर निकालते ही कहा “और एक क्षण भी जलके भीतर रहता तो मेरे प्राण पखेरू उड जाते !” स्वामीजीने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हें तो मैं मात्र मुमुक्षुत्वका अर्थ बता रहा था ।” शिष्यने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “वह कैसे’’? स्वामीजी मुस्कुराते हुए बोले, “जितनी तडप जलके भीतर तुम्हें सांस लेनेके लिए हो रही थी, जब उतनी ही तडप ईश्वरको पानेके लिए होती है उसे ‘मुमुक्षुत्व’ कहते हैं !”
यदि आप भी साधना कर रहे हैं तो आप भी इस प्रसंगसे बोध लेकर समीक्षा करें कि यदि आप ईश्वरप्राप्ति करना चाहते हैं तो क्या आपमें यह गुण है या नहीं ? यदि नहीं है तो इस गुणके संवर्धन हेतु प्रयास करें !
मुमुक्षुत्व बढानेके लिए –
१. अच्छे साधकोंके संग रहना चाहिए; क्योंकि साधनाके प्रति उनकी निष्ठा एवं सातत्यसे किए जानेवाले प्रयत्नोंको देखकर हमें भी स्फूर्ति मिलती है ।
२. सन्तोंने क्या किया कि उन्होंने सन्त पदको प्राप्त किया ?, उसका गम्भीरतासे अभ्यास कर, उसे जीवनमें उतारनेका प्रयास करना चाहिए !
३. अध्यात्मशास्त्रके सैद्धान्तिक पक्षका अभ्यास करें, इससे ध्येय निर्धारित करनेमें सहायता मिलती है, साथ ही शंकाओंका समाधान होता है ।
५. चाहे आप किसी भी आश्रमसे सम्बन्धित हों, जैसे – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ या वानप्रस्थ, अपनी दिनचर्यामें साधना हेतु दो घण्टे अवश्य निकालें, इससे आपको अनुभूतियां होंगी एवं श्रद्धामें वृद्धि होगी तथा कुछ वर्षोंमें साधनाको, व्यावहारिक जीवनकी अपेक्षा अधिक प्रधानता देने लगेंगे, तभी एक दिवस मुमुक्षुत्वका निर्माण होगा ।
६. किसी सन्तके आश्रममें जाकर सेवा करें, इससे आपपर गुरुतत्त्वकी कृपा होगी एवं आपको योग्य मार्गदर्शन मिलना आरम्भ होगा ।
७. मुमुक्षुत्व बढे, इस हेतु गुरु चरणोंमें या ईश्वर चरणोंमें अविरत प्रार्थना करें ! – तनुजा ठाकुर (१६.१०.२०१७)
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