आयुर्वेदिक औषधियोंको विश्वमें मान्यता दिलानेका प्रधानमन्त्री मोदीका प्रशंसनीय प्रयास !


अक्तूबर २८, २०१८

आने वाले दिनोंमें आयुर्वेदिक औषधियां विदेशोंमें भी विक्रय हो सकेंगी ! शासनने इसके लिए प्रयास तीव्र कर दिए हैं । आयुर्वेदिक औषधियों और चिकित्सकोंको मान्यता देनेके लिए अभी तक नौ देशोंके साथ सन्धि हो चुकी है और ४५ देशोंसे वार्ता भी चल रही है । विदेशोंमें मान्यता दिलानेके लिए आयुर्वेदिक औषधियोंको औषध परीक्षणसे गुजारने, एकस्व अधिकार (पेटेंट) करने और उत्पादनकी कसौटीके मानक निर्धारित करनेके प्रयास तीव्र हो गए हैं ।

अमेरिका सहित विश्वके अधिकांश देशोंमें आयुर्वेदिक औषधियोंको मान्यता नहीं मिली है । वहां ये दवाएं अतिरिक्त खाद्य पदार्थके (फूड सप्लीमेंट) रूपमें विक्रय होती है । आयुष मन्त्रालयके एक वरिष्ठ अधिकारीने कहा कि इन देशोंमें औषधि नियामक विभागके नियमोंके अनुरूप नहीं होनेके कारण औषधिके रूपमें आयुर्वेदिक औषधियोंको मान्यता नहीं मिल पाती है ।

उन्होंने कहा कि सरकार आयुर्वेदिक औषधियोंको उन नियमोंके अनुरूप ढालनेका प्रयास कर रही हैं । उनके अनुसार इसके लिए आयुर्वेदिक औषधियोंको मान्यता देनेके पूर्व चिकित्सिय परीक्षण किया जा रहा है । उनके अनुसार डेंगूकी अभी तक एलोपैथमें भी कोई औषधि उपलब्ध नहीं है, लेकिन आयुर्वेदमें इसके लिए औषधि विकसित कर ली गई है । इसका चिकित्सिय परीक्षण अन्तिम चरणमें है ।

आयुष मंत्रालयके वरिष्ठ अधिकारीके अनुसार अभी तक आयुर्वेदिक औषधियां आयुर्वेदके प्राचीन सूत्रपर बनाकर विक्रय की जाती थी; लेकिन अब देशके उच्च अनुसंधान संस्थान आयुर्वेदिक औषधियोंको विकसित करनेमें जुटे हैं । ‘सीएसआइआर’के अन्तर्गत आने वाली लखनऊकी ‘नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट’ने मधुमेहके लिए ‘बीजीआर-३४’ नामक औषधि विकसित की है । कुछ वर्षोंके भीतर यह औषधि मधुमेहकी चिकित्सामें २० बडे नामोंमें सम्मिलित हो गई है । इसीप्रकार सफेद दागके लिए रक्षा अनुसंधानसे जुडे डीआरडीओने ‘ल्यूकोस्किन’ नामक औषधि विकसित की है । जांचके पश्चात् इसे भी प्रयोगके लिए उतार दिया गया है ।

“स्वतन्त्रताके पश्चात् राजनेताओंके राष्ट्रविरोधी कृत्योंके फलस्वरूप यह महान चिकित्सिय विज्ञान लगभग लुप्तप्राय ही हो गया है । स्थिति इतनी विकट है कि सामान्य रोग ज्वर आदिके लिए भी लोग ऐलोपैथकी विषकारी औषधि खाते हैं । ऐसेमें मोदी शासनका यह प्रयास प्रशंसनीय है” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : दैनिक जागरण 



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